वर्जनाओं से परे भी जीवन है
दरअसल वर्जनाओं से परे ही जीवन है
वर्जनाएं कुंठित करती हैं
बाधित - अवरोधित करती हैं समरसताओं को
स्वाभाविकताओं को
पनपने लगती है व्यर्थ किस्म की निष्क्रियता
जकड़ लेती है जीवन को कसकर
श्वांस को भी
जकड़ती रहती है तब तक
जब तक कि उसकी मृत्यु न हो जाए
पर मार नहीं पाती उसे
क्योंकि तब भी बची रह जाती है एक बूँद ख्वाहिशों की
तृष्णा की
यहीं से महसूस होता है खुद का जिन्दा होना खुद को ,
दरअसल वर्जनाओं से परे ही जीवन है
वर्जनाएं कुंठित करती हैं
बाधित - अवरोधित करती हैं समरसताओं को
स्वाभाविकताओं को
पनपने लगती है व्यर्थ किस्म की निष्क्रियता
जकड़ लेती है जीवन को कसकर
श्वांस को भी
जकड़ती रहती है तब तक
जब तक कि उसकी मृत्यु न हो जाए
पर मार नहीं पाती उसे
क्योंकि तब भी बची रह जाती है एक बूँद ख्वाहिशों की
तृष्णा की
यहीं से महसूस होता है खुद का जिन्दा होना खुद को ,
संस्कारों
तुम चाहो तो मुझे चरित्रहीन कह सकते हो
किन्तु अब मै मुक्त हूँ तुमसे !!
तुम चाहो तो मुझे चरित्रहीन कह सकते हो
किन्तु अब मै मुक्त हूँ तुमसे !!
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पागल मनवा तोड़े है भीतर ही भीतर
हर आला हर ताला
खोल के झटपट फिरा करे है इहाँ उहाँ
होके मतवाला ,
मार झपट्टा पकड़ के जुगनू मुट्ठी भर
खूब हँसे है खिल खिल खिल खिल पेट पकड के
छाय रही घनघोर उदासी चिहुंक उठी जब देखे उका
आंखन में भर भर उजियारा
आँचल में से खोल के कुंजी पकड़ के नटई ठूंस दिया फिर वापस उका
जैसे हो भूसा का गारा
एक एक कर फिर लगई रही ताले पर ताला खूब ठुनककर
पैर पटककर
अब निकलो
अब निकलो तो देखूं तोका
कैसे बाहर अब आवत हो
कैसे सबसे बतियावत हो
कैसे खुशियों को चिरिया का बान धराकर
हाथ पकडकर मुस्कावत हो
इहाँ हमारा राज़ चलत है
बात चलत है
चलत है हमरी ही ठकुराई
कहकर बुढ़िया बनी उदासी बईठ रही
ख़म ठोक के मन के दरवज्जे पर !!
हर आला हर ताला
खोल के झटपट फिरा करे है इहाँ उहाँ
होके मतवाला ,
मार झपट्टा पकड़ के जुगनू मुट्ठी भर
खूब हँसे है खिल खिल खिल खिल पेट पकड के
छाय रही घनघोर उदासी चिहुंक उठी जब देखे उका
आंखन में भर भर उजियारा
आँचल में से खोल के कुंजी पकड़ के नटई ठूंस दिया फिर वापस उका
जैसे हो भूसा का गारा
एक एक कर फिर लगई रही ताले पर ताला खूब ठुनककर
पैर पटककर
अब निकलो
अब निकलो तो देखूं तोका
कैसे बाहर अब आवत हो
कैसे सबसे बतियावत हो
कैसे खुशियों को चिरिया का बान धराकर
हाथ पकडकर मुस्कावत हो
इहाँ हमारा राज़ चलत है
बात चलत है
चलत है हमरी ही ठकुराई
कहकर बुढ़िया बनी उदासी बईठ रही
ख़म ठोक के मन के दरवज्जे पर !!
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बेहद सीली सी रातों का जाम पड़ा है
और पडी है ढेरों सी पीली तन्हाई
ज़ख्म रखे हैं पहलू के खाली हिस्से में
टीस रहा है कुछ रह रहकर
यूँ कि जैसे अमलतास पर कोई चिड़िया फुदक रही हो
चहक रही हो छाल को उसके रेशा करके
रेज़ा करके
सिसक रहा है कोई बाँहों के घेरे में अर्धचन्द्र सा
मुट्ठी बांधे तारों की
इसे घोलकर पारे सा जो पी जाऊं मै
जी पाऊं फिर सारी रातों का कुछ हिस्सा
जी पाऊं फिर ओर छोर तक प्रेमिल किस्सा
खुद को भी मै प्रेम बना लूं
कर पाऊं जो !!
बेहद सीली सी रातों का जाम पड़ा है
और पडी है ढेरों सी पीली तन्हाई
ज़ख्म रखे हैं पहलू के खाली हिस्से में
टीस रहा है कुछ रह रहकर
यूँ कि जैसे अमलतास पर कोई चिड़िया फुदक रही हो
चहक रही हो छाल को उसके रेशा करके
रेज़ा करके
सिसक रहा है कोई बाँहों के घेरे में अर्धचन्द्र सा
मुट्ठी बांधे तारों की
इसे घोलकर पारे सा जो पी जाऊं मै
जी पाऊं फिर सारी रातों का कुछ हिस्सा
जी पाऊं फिर ओर छोर तक प्रेमिल किस्सा
खुद को भी मै प्रेम बना लूं
कर पाऊं जो !!
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