Tuesday 15 May 2012

माँ

मिटटी को रगड़कर जिस्म से अपने ज़रा सोचो
खुशबू है जो इसकी क्या तुम्हें खुद की नहीं लगती,
 
इसी का तत्व तुममे है जो तुम अब भी सलामत हो
इसी के आब से तुम अब भी इक ज़िंदा इबारत हो ,

सीने पर इसी के तुम खडा संसार करते हो
तो फिर क्यों आज इसके सत्य से इनकार करते हो ,

आया वक्त है कि तुम करो स्वीकार अब इसको
कि मिटटी माँ का ही प्रतिरूप है खामोश रहकर भी !!




                                           अर्चना "राज "

क्षणिकाएं ---मई----१२

छलककर आसमां से दर्द का दरिया ज़मीं पहुंचा
समंदर हो गयी धरती कुछ ऐसे इश्क जब तड़पा
सुकूं आता नहीं मुझको तेरे तस्कीन वादों पर
तेरा दामन रूहानी हो कहर कुछ इस कदर बरपा !!

गुजरी हुई यादें नहीं अफसाना भी मौजूं है ये
बीती हुई बातें नहीं जीनत है ये हर आह की
तेरी अंजुमन से गुजर रही सरे राह जो पर्दा किये
सजदा करो झुक कर ज़रा की ये अब भी आफताब है !!

कहीं भी कोई शख्स तुझसा नहीं होगा
ऐसा जुनूनी इश्क भी मुझसा नहीं होगा
होने को तो हों लाख किस्से मुहब्बत के
मेरी इबादत सा मगर किस्सा नहीं होगा !!

कल चाँद मेरी छत पर उतरा यूँ तारों की सौगात लिए
रात की सब्ज़ सियाही को अहसासों से आबाद किये
सिमटी सी मै शरमाई थी कुछ कुछ ऐसे घबराई थी
वो लेकर मुझको पहलू में खुद ही बादल सा बरस पडा !!

रोने को तो न कोई बहाना न सबब चाहिए
तू मेरा है यही यकीं मुझे बस अब चाहिए
मानूंगी तभी जब तू कहेगा अपनी आँखों से
तेरी आँखों में मुझे वरना खुद का दर्द चाहिए !!

Monday 14 May 2012

क्षणिकाएं ..मई ---१२

आसमान की सियाही तेरी धडकनों में उतार दूं
जो तू बरसे बेहिसाब तो मै खुद में संभाल लूं !!

चटके आईने में तेरी सूरत पूरी नज़र नहीं आती
छलक उठते हैं जब अश्क तो दूरी नज़र नहीं आती !!

नमी की आस में भटका किया मै यूँ ही दर-ब-दर
जो बरसो तो बेहिसाब की भीगूँ मै बेहिसाब !!

थाम लूंगी समन्दर को भी अब दामन में अपने
कि मै भी लहरों पर चलने का हौसला रखती हूँ !!

अब्र को मै कैद कर लूं अश्क के आगोश में
दिल मेरा रोयेगा फिर भी दरिया हो जाने तलक !!

दोस्ती कि शक्ल में अपने भी खंज़र उठाये फिरते हैं
इस तिलस्मी दुनिया में अब दुश्मन करीब लगते हैं !!

सामने आकर ज़रा इक बार ये कह दो कभी
दोस्ती कि शक्ल में तुम दुश्मनी के साथ हो !!

रात का आइना मुझे मेरी बेबसी दिखाता रहा
मै रात भर रोती रही वो रात भर हंसता रहा !!

शाखों कि बारादरी में यूँ बैठे हुए मुद्दत हुई
उगने लगा इक शाख मुझमे भी तेरी उम्मीद का !!

मुफलिसी वो खंजर है जो सामने आकर ही वार करता है
हलाल होती हैं इसमें जिंदगियां मय अरमान बहुत आहिस्ता से !!

तेरी जुस्तजू तेरी चाह में ये तमाम उम्र यूँ गुजर गयी
इक चाँद था वो भी गया इक नज़्म जैसे पिघल गयी !!

उदासी चाँद कि अब अब्र कि बूंदों सरीखी है
बरस जाए जो ये अब चांदनी पर तो करार आये !!


































Saturday 12 May 2012

क्षणिकाएं ----जनवरी १२

चलो अब गर्म सलाखों से लिखें तकदीर चट्टान के पन्नो पर
कि अश्कों में डूबी कलम तो इरादों को कमजोर बना देती है !!

कुदरतन शौक है दिल को लगाना आपका
न यूँ खेला करो इनसे ये नाज़ुक चीज़ होती है !!

उलीचकर तमाम दर्द इस कदर गंगा में मिला दिया मैंने
कि तेरे इश्क की बेवफाई को रुसवा नहीं किया मैंने !!

दर्द का आबशार कुछ इस तरह नुमुदार हुआ ज़माने में
परदे की कोशिश में दुपट्टा भी बेहिसाब ज़ख़्मी नज़र आया !!

तू कहता है की तू अब वो नहीं है जो तू पहले था
मै कैसे मान लूं की इश्क भी चेहरे बदलता है !!

चलो जी लें ज़रा कुछ देर साँसें अब भी बाकी हैं
की मरने की भी हसरत अब तो यूँ  मरने नहीं देती !!

अपने ज़ख्मो को मेरी पलकों से छू लेने दो मुझे
अपने अश्कों को मेरे अश्कों में यूँ ही घुल जाने दो !!

मुझे समेट लेने दो अपने दामन में तुम्हारे दर्द सारे
और अपनी रूह के संग तमाम उम्र यूँ ही बिखर जाने दो  !!

बुझने लगता है रिश्तों में अलाव कुछ वक्त के बाद

जमने लगती हैं फिर वहां बर्फ की सतहें आहिस्ता से !!

रूह से गुजरकर जो इक आह बिखर गयी है इस तमाम कायनात में
इश्क की खुशबू महसूस होने लगी है अब उसमे बेइन्तहां दर्द की जगह !!

सीपियों में मोती सा पलता है उसका इश्क सदियों तलक 
समंदर की ये बेइन्तहां बेचैनी यूँ बेवजह नहीं हुआ करती !!
  
क्यूँ तैरता है मेरा ज़िक्र उन हवाओं में जहां बारूद की खुशबू आती है
सरहद के पार गुमनाम अंधेरों में भी
क्या सिसकियाँ सुनाई देती हैं!!

जिन्दगी के आईने में ये किसकी शक्ल 
इतनी बूढी इतनी ज़र्द नज़र आती है 
ये तुम हो या मै हूँ या फिर हमारा नसीब
 जो इश्क के ईमान की पैदाइश है !!

मुट्ठी में जिन्दगी के है कैद लम्हे इतने 
गुजरते हैं दरमियान जो साँसों से रेत जैसे 
अहसास नहीं होता खोने का इनको अक्सर 
बस  आँख है भर आती आइना फकत देखकर !!























Friday 11 May 2012

क्षणिकाएं ---मार्च १२

दर्द बेहद हो तो कराह उठता है बेमकसद भी
करार आता नहीं फकत मौत नज़र आती है !!

फलक पे चाँद ठहरा था ज़मीं पे तुम नज़र आये
तो यूँ सोचा तेरे दामन में सारी शब् गुजर जाए !!

 इश्क यूँ होने और न होने के बीच की कशमकश भी है
 गुजर जाती है उम्र अक्सर इस समझ की आज़माइश में !!

पुकारा था तुमने इक रोज मेरा नाम बड़ी शाइस्तगी से
ठहरा हुआ है हवाओं में जो अब तक ख़ामोशी बनकर !!

हवाओं के दामन में देखो कितने ही ज़ख्म पला करते हैं
फिरती रहती हैं फिर भी ये अश्कों को आँचल में सहेजे !!

लगा था उम्र यूँ ही गुजर जायेगी तन्हाइयों से लड़ते हुए
सितारा फलक से टूटा तो आसमा हमदम लगने लगा !!

मुस्कुराहट अपने लबों पर अब सारी उम्र यूँ ही बिखरने दो
उदासिया तो तुम्हारे शहर की तमाम मै समेट लायी हूँ !!

सहमकर उस पल ही दर्द मेरा थम सा गया था
जिस पल तेरी आँखों में मैंने चाहत को पिघलते देखा !

ठहरो ज़रा की मै थाम लूं इन धडकनों के राग को
जो बिखर गए ये फिजां में तो फिर रागिनी बन जायेंगे !!

जला करते हैं जब अरमान मुहब्बत के
तो भला किसको ये ख़याल आता है
बेचैनियों का कारवाँ तो अक्सर ही
बस अश्कों के सैलाब से गुजर जाता है !!

उदासियों की चादर बनाकर
मुझे ओढने - बिछाने दो
सिमटने दो खुद को
इनके तल्ख़ दामन में

मेरी ही पीड़ा से जन्मी है ये
मुझमे ही फना होने के लिए !!


Thursday 10 May 2012

क्षणिकाएं ----------- अप्रैल १२

फौलादी इरादा है ज़माने को दिखा दो तुम

सच्चाई कभी भी झुक के यूँ टूटा नहीं करती !!



चाँद का भटकना यूँ तमाम रात और तेरा गुम हो जाना

तुझे अहसास भी है की कितनी आहों का तसव्वुर है तू !!



तन्हाई का आलम और ये तेरी यादों का दर्द बेशुमार

तप्त आँखों में पलते आंसू भी अब मौन हुए जाते हैं !!



गुजर जाए तो यूँ कहना की ये तो वक्त था चला गया

सिमटकर तो पहलू में अब यादें भी नहीं रहतीं !!



गुजरते लम्हों को यादों की बैसाखी मत बनाओ

जी लेने दो इसे यूँ खुद का तसव्वुर बनकर  !!



इश्क यूँ होने और न होने के बीच की कशमकश भी है

गुजरती है उम्र अक्सर इसी समझ की आज़माइश में !!



जिन्दगी दर्द के कतरों में बंटा अफसाना है

अब यूँ करें की इसे वक्त के पन्नो में समेटे  !!



सफ़र ख़त्म हो चला है मगर मंजिल नज़र नहीं आती

अब तो रास्तों के कंकड़  भी हमराह से लगने लगे हैं !!



संभलकर चलना की रास्ता मुश्किल है बहुत

ये इश्क है दिल बहलाने का सामन नहीं !!



क़त्ल कर दो या क़त्ल का सामन मुहैया कर दो

अब यूँ रोज थोडा-थोडा नहीं मरा जाता मुझसे !!



पलटकर थम सी जाती हूँ तेरी आहों के साए में

तेरी हर सांस मुझमे इस कदर हलचल मचाती है !!



इक नज़्म लिखी है साँसों ने , इक नज़्म कही है आहों ने

इक नज़्म अश्कों में बदल गयी और दरिया को सैलाब किया !!



चाँद के जिस्म से यूँ आह का तूफ़ान बरपा

सिसक उठी कायनात भी दरिया बनकर !!



तकलीफ दिल की बड़ी आन से छुपाया तुमने
कहा कुछ नहीं बस मुस्कान दिखाया तुमने
दर्द यूँ बेचैन दरिया सा उफान रहा था तुममे
पर ये इश्क भी बड़ी शान से निभाया तुमने !!





 



























































Wednesday 9 May 2012

क्षणिकाएं ----------- अप्रैल १२

लफ़्ज़ों में वो तासीर कहाँ जो मेरे इश्क को बयान कर पाए

जानना है तो देख मेरी आँखों में ठहरे इन सुर्ख पहाड़ों को !!



जिन्दगी को ये हक़ नहीं की वो मेरी रूह को छू ले

बस एक तेरा आना ही वहां मुझको सुकून देता है !!



तेरे कदमो के निशाँ आज भी बड़ी दूर तलक नज़र आये

लहरों ने यूँ सहेज रक्खा है उसे अपनी नमी के साए में !!




रूह सिमट जाती है मेरी यूँ उफककर तेरे दामन के साए में

मानो इक सांस के सहमेपन ने धडकने की गुस्ताखी की हो !!




दर्द बेहद हो तो बस कराह उठता है बेमकसद भी

करार आता नहीं फिर फकत मौत नज़र आती है !!



शब् भर तेरी यादें यूँ साए सी लिपट जाती हैं मुझसे

कि तेरे होने का आभास ही मुझे पाकीज़ा बना जाता है !!



फलक पे चाँद ठहरा था ज़मीन पे तुम नज़र आये

तो यूँ सोचा तेरे दामन में सारी शब् गुजर जाए !!































क्षणिकाएं

रो रो के कर चुके हैं फ़रियाद तुमसे इश्क की

हंस हंस के जिसको तुमने यूँ आइना दिखा दिया !!



इक रहगुजर है सामने जाती नज़र जहां तलक

इक तुम हो इतने पास कि आते नहीं नज़र कभी !!



गुजरती नहीं है रात सवालों की शक्ल में

जवाबों का इंतज़ार सलीबों सा हो गया !!



 बाबस्ता हूँ कुछ इस कदर तेरे ख्यालों में हमनफज मेरे

मेरे दहलीज़ पर तेरा आना भी नज़र नहीं आता मुझको !!



सब्र टूटा नहीं है मेरा की उम्मीद अभी बाकी है

हर सांस जीती हूँ तुम्हें पर रीत अभी बाकी है  !!



मेरे ज़ख्मो को आंसुओं की बारिश में बदल जाने दो

थाम लो मुझे अपनी बाहों में और बिखर जाने दो !!



अहसासों की कशमकश में कुछ शब्द बिखर जाते हैं

जिन्दगी बेमकसद ही तो दर्द की तस्वीर नहीं होती !!



सड़कों की रौशनी में भी बना करती है तकदीर यूँ तो

मुकद्दर संवारने को कभी बहाने की जरूरत नहीं होती !!



धडका करती है तेरी आहट भी मेरे खामोश दरीचे में

तेरे कदमो के निशान मुझे वहां अब भी नज़र आते हैं !!



चमन में फूल भी उगते हैं संग काँटों के साए में

बिखर जाती है ये मुस्कान भी अश्कों तले छिपकर !!



मुस्कुराने की जद्दोजहद में अश्क फिसल जाते हैं

यादों को जीने का सलीका सबको नहीं आता !!



मिटटी से इक अंकुर फूटा बीज बना हरियाली 
गहन वेदना से ही उपजे खुशियों की किलकारी 
बिखरी है कण कण में यही चेतना बनकर माया 
सृष्टी की रचना से ही गतिशील है दुनिया सारी !!






























क्षणिकाएं

तुम्हारे अंतस से उपजी पीड़ा छलक उठती है मेरी आँखों से

तुम्हारे दर्द का दरिया मैंने खुद में कुछ यूँ थाम रक्खा है !!



धडकती आह के साए में पलता दर्द अब थकने लगा है

सुनाई पड़ने लगी है आहट भी अब इक खामोश सफ़र की !!




बिस्तर की सिलवटों में किसकी हैं ये बेचैनियाँ

ये कौन है जो रात भर सज़दे में बस रोता रहा !!



बस चाँद की उम्मीद में हर रात वो जगती रही

आया भी जो कमबख्त तो पहलू बदलकर सो गया !!



नज़रों से यूँ बाजीगरी दिखाया नहीं करते

करते हैं अगर इश्क तो रुलाया नहीं करते

कह दो बस एक बार की हो तुम भी बस मेरे

ना कहके मुझे हर बार यूँ सताया नहीं करते !!

क्षणिकाएं

रोने का तो न कोई बहाना न ही सबब चाहिए

तू मेरा है यही विश्वास बस मुझे अब चाहिए

यकीं होगा जो तू कह पाए ये अपनी आँखों से

तेरी आँखों में वर्ना मुझको खुद का दर्द चाहिए !!





 सामने आकर ज़रा इक बार ये कह दो कभी

दोस्ती की आड़ में तुम दुश्मनी के साथ हो !!



दोस्ती की शक्ल में अपने भी खंज़र उठाये फिरते हैं

इस तिलस्मी दुनिया में अब दुश्मन करीब लगते हैं !!



अब्र को मै कैद कर लूं अश्क के आगोश में

दिल मेरा रोयेगा फिर भी दरिया हो जाने तलक !!



थाम लूंगी अब समन्दर को भी दामन में अपने

की मै भी लहरों पर चलने का हौसला रखती हूँ !!




नमी की आस में भटका किया मै यूँ ही दर-ब-दर

गर बरसो तो बेहिसाब की भीगूँ मै बेहिसाब !!


 चटके आईने में तेरी सूरत पूरी नज़र नहीं आती

छलक उठते हैं जब अश्क तो दूरी नज़र नहीं आती !!


            archanaa raj 



Tuesday 8 May 2012

???

कौन है अपना यहाँ

है किसे फुर्सत
जो देखे
पीर की अंगनाइयां
और रंग अश्कों में घुला,

खुद उठाकर
छोड़ दे जो
बीच लहरों के भंवर में
क्यों वो सोचेगा कभी
ये दर्द जो दिल में उठे,

खींचकर पल्लू
वो जिसने खुद चुना
अपने लिए
जब बजीं शहनाइयां
और स्वप्न
भी दिल में खिले ,

वो सजग प्रहरी ही जब
यूँ थामकर बाहों में अपने
सौंप देगा मृत्यु को
तब कौन है अपना यहाँ !!

अर्चना "राज "

Monday 7 May 2012

स्पर्श

कभी आओ
छू लो मुझे
और मोम का दरिया कर दो ,

तेरे जाने पर
दर्द के पिघलने का
इक सहारा तो हो जाय ,

अभी तो मै
बस इक
पत्थर सी नज़र आती हूँ ,

टकराऊं भी तो
दर्द टुकड़ों में बंटकर
कई गुना बढ़ जाता है
हमनफज मेरे !!

अर्चना राज

Sunday 6 May 2012

जीवन दर्शन


 यहाँ मुहब्बत का अर्थ जीवन और मुस्कुराहटों का अर्थ दर्शन से है ..तुझे ..जीवन को संबोधन भर है
 रंगों और खुशबुओं का तात्पर्य सभ्यता और संस्कार से है जो हमारे भारतीय परम्परा की अमूल्य धरोहर हैं !


 मुहब्बतों की शक्ल अक्सर मुस्कुराहटों से जुदा होती है
तुझे जानकर ही ये जाना मैंने ,

कच्ची धूप में कभी मूरत नहीं पकती
न ही बर्फ के टुकड़ों से मिटटी सानी जाती है
बेहद आवश्यक होने पर भी यहाँ रंगों और खुशबू का जिक्र बेमानी है ,

मुहब्बतों की मूरतों को तो विशुद्ध घाम में जलना पड़ता है , तपना पड़ता है 
तब कहीं इसके साकार होने के प्रक्रिया की शुरुआत भर होती है 
एक-एक दरार को पाटने के लिए 
खुद को पानी सा कर लेना होता है , रंग गंध स्वाद हीन 
जिसका अस्तित्व घुलकर परिवर्तित होने के गुणों के कारण ही सुरक्षित है,

सूरज जब चरमोत्कर्ष पर अपनी हथेलियों को आहिस्ता-आहिस्ता फैलाता है 
और अनगिनत अक्षय उर्जा का भण्डार मानो एक-एक कर 
समस्त धरती पर बिखरता चला जाता है 
तब ही तो पहली सांस जनमती है मूरत में 
और तब ही उसके जीवंत होने की सार्थकता भी उभरती है 
अब इन्द्रधनुषी रंगों से सजाये सँवारे जाने के बाद ही 
पूरे आत्मविश्वास से मुहब्बतों में मुस्कुराहटों का मिलन होता है 

और इनका ये मिलन एक खुशबू की तरह जीवित रहता है 
पूरी सृष्टि में , अनंतकाल तक के लिए !!



                           अर्चना "राज "

Friday 4 May 2012

सृजन

सृजन होगा

घनी पीड़ा में
घने ताप में
गहन अवसाद में
निराशा के कोटर में भी
सृजन होगा ,

सृजन होगा
क्योंकि ये विश्व रचित है
निर्मित है
गतिशील है
तो संभावनाओं के परे भी
सृजन होगा ,

खुली धूप में
गहन अन्धकार में
धुंआधार बारिश में
उफनते समुद्र में
आशा की ऊँगली थामे
सृजन होगा ,

सृजन होगा
क्योंकि सृष्टि है
सत्य है
शिव है !!

अर्चना "राज "