कौन है अपना यहाँ
है किसे फुर्सत
जो देखे
पीर की अंगनाइयां
और रंग अश्कों में घुला,
खुद उठाकर
छोड़ दे जो
बीच लहरों के भंवर में
क्यों वो सोचेगा कभी
ये दर्द जो दिल में उठे,
खींचकर पल्लू
वो जिसने खुद चुना
अपने लिए
जब बजीं शहनाइयां
और स्वप्न
भी दिल में खिले ,
वो सजग प्रहरी ही जब
यूँ थामकर बाहों में अपने
सौंप देगा मृत्यु को
तब कौन है अपना यहाँ !!
अर्चना "राज "
है किसे फुर्सत
जो देखे
पीर की अंगनाइयां
और रंग अश्कों में घुला,
खुद उठाकर
छोड़ दे जो
बीच लहरों के भंवर में
क्यों वो सोचेगा कभी
ये दर्द जो दिल में उठे,
खींचकर पल्लू
वो जिसने खुद चुना
अपने लिए
जब बजीं शहनाइयां
और स्वप्न
भी दिल में खिले ,
वो सजग प्रहरी ही जब
यूँ थामकर बाहों में अपने
सौंप देगा मृत्यु को
तब कौन है अपना यहाँ !!
अर्चना "राज "
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