Wednesday, 9 May 2012

क्षणिकाएं ----------- अप्रैल १२

लफ़्ज़ों में वो तासीर कहाँ जो मेरे इश्क को बयान कर पाए

जानना है तो देख मेरी आँखों में ठहरे इन सुर्ख पहाड़ों को !!



जिन्दगी को ये हक़ नहीं की वो मेरी रूह को छू ले

बस एक तेरा आना ही वहां मुझको सुकून देता है !!



तेरे कदमो के निशाँ आज भी बड़ी दूर तलक नज़र आये

लहरों ने यूँ सहेज रक्खा है उसे अपनी नमी के साए में !!




रूह सिमट जाती है मेरी यूँ उफककर तेरे दामन के साए में

मानो इक सांस के सहमेपन ने धडकने की गुस्ताखी की हो !!




दर्द बेहद हो तो बस कराह उठता है बेमकसद भी

करार आता नहीं फिर फकत मौत नज़र आती है !!



शब् भर तेरी यादें यूँ साए सी लिपट जाती हैं मुझसे

कि तेरे होने का आभास ही मुझे पाकीज़ा बना जाता है !!



फलक पे चाँद ठहरा था ज़मीन पे तुम नज़र आये

तो यूँ सोचा तेरे दामन में सारी शब् गुजर जाए !!































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