Wednesday 9 May 2012

क्षणिकाएं

रोने का तो न कोई बहाना न ही सबब चाहिए

तू मेरा है यही विश्वास बस मुझे अब चाहिए

यकीं होगा जो तू कह पाए ये अपनी आँखों से

तेरी आँखों में वर्ना मुझको खुद का दर्द चाहिए !!





 सामने आकर ज़रा इक बार ये कह दो कभी

दोस्ती की आड़ में तुम दुश्मनी के साथ हो !!



दोस्ती की शक्ल में अपने भी खंज़र उठाये फिरते हैं

इस तिलस्मी दुनिया में अब दुश्मन करीब लगते हैं !!



अब्र को मै कैद कर लूं अश्क के आगोश में

दिल मेरा रोयेगा फिर भी दरिया हो जाने तलक !!



थाम लूंगी अब समन्दर को भी दामन में अपने

की मै भी लहरों पर चलने का हौसला रखती हूँ !!




नमी की आस में भटका किया मै यूँ ही दर-ब-दर

गर बरसो तो बेहिसाब की भीगूँ मै बेहिसाब !!


 चटके आईने में तेरी सूरत पूरी नज़र नहीं आती

छलक उठते हैं जब अश्क तो दूरी नज़र नहीं आती !!


            archanaa raj 



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