Wednesday 17 June 2015

मत करो

मत करो ,
यूँ मत करो कि न बचे कुछ बीच के सेतु सहित
बीच की उर्जा जहां नैराश्य का साधन बने
मतिहीन हो मत यूँ करो ,
रह भी जाए गर अगर रिश्ता कहीं टूटा हुआ
उधड़ा हुआ ..... रोता हुआ हर पल कहीं सहमा हुआ
फिर क्या हो हासिल
कि जिन्दगी पटकी रहे कदमो तले
और अहम् का साम्राज्य हो ,
कुछ नहीं रह पायेगा कुछ नहीं बच पायेगा
गर बच गया ये अहम् कुंठित ,
सो त्याग दो इसको अभी
और फिर करो रचना एक सुन्दर दृश्य की
कि हों जहां खुशियाँ असीमित
हो जहां सपने असीमित
और हो मुस्कान संग उपलब्धियों के
खिलखिलाती रौशनी का साथ हो
आगाज़ हो फिर एक निर्मल भाव का ,
मत करो ,
यूँ मत करो कि न बचे कुछ बीच के सेतु सहित
बीच की उर्जा जहां नैराश्य का साधन बने
मतिहीन हो मत यूँ करो !!

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