Wednesday 15 September 2021

फोन पर बतियाना --- मज़ा या सज़ा

दरअसल जब स्कॉटलैंड के वैज्ञानिक अलेक्जेडर ग्राहम बेल ने 2 जून 1875 में फोन का क्रांतिकारी आविष्कार किया होगा तब उन्हें भी फोन के इस वर्तमान आधुनिक और इस कदर सर्वसुविधायुक्त होने का आभास नहीं रहा होगा  |तत्पश्चात मोटोरोला कंपनी की अपनी टीम के साथ मार्टिन कूपर ने पहला मोबाइल फोन 1973 में बनाया जिसका वजन था 2 किलोग्राम और तब से अब तक यानि इन 48 सालों में इसने एक शानदार लंबा सफर तय किया है जिसे देखकर तो अब कूपर भी चकित हैं  | ये एक ऐसी सुविधा है जिसने पूरी दुनिया को करीब ला दिया है |वसुधैव कुटुंबकम की  अवधारणा को मूर्त रूप देने में भी ये काफी हद तक सहायक है | 

हालांकि शीर्षक तो कुछ और है पर मेरा मानना है कि आज के तकनीकी युग में फोन हमारी सबसे बड़ी जरूरत है | मज़ा या सज़ा इसके इस्तेमाल के तरीकों और व्यक्तियों पर निर्भर करता है और इस बात पर भी कि दूसरी तरफ कौन है ? अगर कोई ऐसा व्यक्ति है जिसे आप पसंद करते हैं तब तो लम्बी मजेदार बात होती है जिसे ज़ाहिर तौर पर मज़ा ही कहा जाएगा पर यदि कोई वसूली वाला हो तो निश्चय ही सज़ा क्या बहुत बड़ी सज़ा है | साथ ही जो वक्त - बेवक्त क्रेडिट कार्ड , एडमिशन,निवेश वालों की पुकार सुनाई पड़ती है तो ये खीझ ही उत्पन्न करती है | माना ये उनका काम है और खासकर इस दौर में जबकि हमारी सह्रदयता और बर्दाश्त भी तनिक ज्यादा खींचे गए हैं उसके बावजूद भी जब बड़ी मुश्किल से नींद का सुकून भरा अहसास बस होने ही वाला होता है तो एक फोन कॉल सबकुछ धराशाई कर देता है | अकारण और अवांछित फोन काल  मानसिक मनोविकारों के कई कारणों में से एक है | इसके ठीक विपरीत आज के वक्त में जब परिवार एकल हैं  और सभी अपने-अपने कार्यों में व्यस्त हैं साथ ही समाज भी घनघोर रूप से लक्ष्य केन्द्रित है तो अकेले रह रहे लोगों के लिए फोन किसी वरदान से कम नहीं है | अपनों के साथ जुड़ने , आभासी और कई बार व्यावहारिक से ज्यादा अच्छे और सच्चे मित्र या समान रूचि वाले मित्रों के समूह यहाँ बन जाते हैं जिनसे जुड़े होने और एक किस्म की स्वीकार्यता का अहसास आत्मविश्वास को बनाए रखने या वापस लौटाने में ख़ासा मददगार साबित होता है | फोन पर वार्तालाप कई बार तनाव का स्तर आश्चर्यजनक रूप से कम कर देता है तो कई बार ये सुविधा मुसीबत का कारण भी बन जाती है | महिलाओं के लिए खासकर ये एक ऐसा दरवाजा है जो संभावनाओं के द्वार खोल देता है पर साथ ही कुछ बददिमाग और विकृत मानसिकता वाले लोगों की वजह से उन्हें मुश्किलों में भी डाल देता है | इनसे निपटना आसान नहीं |इस सुविधा ने बुजुर्गों और उनके बच्चों के लिए एक आश्वस्ति सुनिश्चित की है | कार्य स्थल पर या दूर रहते हुए भी वो उनके स्वास्थ्य ,उनकी परेशानियों या सुविधाओं की जानकारी रख पाते हैं | जरूरत पड़ने पर ये तकनीक दूर होते हुए भी उनकी त्वरित मदद में कारगर सिद्ध होती है |


इस तरह से हम देख सकते हैं कि फोन की सुविधा एक ऐसी क्रांति है जिसे यदि सूझ-बूझ के साथ इस्तेमाल किया जाए तो ये एक अच्छा और कम देखभाल वाला सच्चा दोस्त है यानि मज़ा पर यदि ज़रा भी असावधानी हुयी या हम चौकन्ने न रहे तो इसे एक बदतरीन सज़ा में तब्दील होते वक्त नहीं लगेगा |



अर्चना राज़ चौबे 























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