Monday 28 February 2022

 सुनो , तुम आ रहे हो न ? बेडरूम में से जल्दी-जल्दी बाल संवारते हुए रीना ने पूछा | कहाँ ... कहते ही मयंक एक बारगी थमक कर खड़ा हो गया | पूछते  ही उसे तुरंत याद आ गया कि आज शाम उसे  रीना के साथ उसके मायके जाना है | रीना की भाभी का  जन्मदिन है आज  | अरे मम्मी के यहाँ और कहाँ ....रीना ने कहा | मयंक को रीना के  मायके जाना बिलकुल पसंद नहीं  पर फिर भी जाता है | सिर्फ रीना की खातिर , उसका मन रखने की खातिर  | दरअसल  मयंक को पसंद नहीं था उसकी माँ का हर बात को पैसे से आंकना ...उसी से हैसियत का निर्धारण करना और जाने-अनजाने बातों -बातों में ही कुछ ऐसा कह देना जो मयंक को बेतरह चुभ जाता और उसका मूड खराब हो जाता  | हालांकि कहती तो वो रीना से ही थीं पर उसे लगता जैसे उसे सुनाया जा रहा है और बस इसी बात से वो अपसेट हो जाता | अक्सर वो मजाक या जुमले की तरह ही कुछ कहतीं पर उसमें छिपा तंज़ मयंक समझ जाता और खुद को अपमानित महसूस करने लगता | रीना माँ  के मोह और मयंक के सम्मान  में पूरा वक्त बातें  सँभालने की नाकाम कोशिश ही करती रहती और फिर उसमें उलझती चली  जाती |  मयंक को ये बिलकुल अच्छा नहीं लगता  | उसे याद है कि पिछली दफा जब वे वहां गये थे तो रीना की माँ ने कैसे रूखेपन से उसके सामने ही रीना को झिड़का था कि कोई ढंग की साडी नहीं थी क्या जो ये पहन ली ...कुछ तो ध्यान रखा करो फिर उसे सामने देख खिसिया कर  हंस पड़ी थीं | उस रात पूरी पार्टी में रीना का चेहरा उतरा रहा ....लोगों से मिलते-जुलते भी उसकी मुस्कान फीकी ही रही |मयंक को बहुत बुरा लगा था क्योंकि वो रीना को उदास नहीं देख सकता था और कहीं न कहीं ऐसी घटनाओं के लिए वो खुद को ही जिम्मेदार मानने लगता था पर कोई चारा भी तो नहीं था |वो रीना का मायका था ...उसके माता-पिता का घर जहाँ उसका बचपन बीता था |  जहाँ वो बड़ी हुयी थी | वहां तो  जाना ही था भले ही अच्छा लगे या न लगे |

दरअसल मयंक  एक बेहद ही साधारण बैकग्राउंड से था | उसके पिता एक निजी कम्पनी में सुपरवाइजर थे और माँ गृहिणी  | मयंक और मीता उनके दो होनहार  जुड़वां बच्चे थे |दोनों ही पढ़ाई में बेहद होशियार | मयंक ग्रेजुएशन के बाद सिविल सर्विस की परीक्षा की तैयारियों में लग गया | कड़ी  मेहनत की और पहली ही कोशिश में आई ए एस क्वालीफाई कर लिया | बहन मीता भी उसके एक साल बाद दूसरे अटेम्पट में आई आर एस बन गयी थी  | यूँ आम तौर पर देखा जाए तो कोई भी इस परिवार से रश्क करे या इस परिवार का हिस्सा बनना चाहे पर रीना के परिवार की तो बात ही अजब थी | रीना बहुत अमीर घर से थी ...इतनी कि विदेशी कारों से कॉलेज आती ....नए और महंगे  फैशनबल कपडे पहनती  | कॉलेज के लड़कों की निगाहें उस पर अटक सी जातीं   , थम जातीं ,उसे निहारते ठंडी आहें भरतीं पर रीना , वो तो अपने और अपने दोस्तों  में ही मस्त ,बिंदास हंसती ठहाके लगाती यहाँ-वहां चहकती फिरती | ऐसे ही एक रोज जब नया सेशन शुरू हुए चंद हफ्ते ही गुजरे थे कि  गलियारे  से गुजरते हुए पहली बार उसकी नज़रें  सीधे-सादे  मासूम से दिखने वाले मयंक से उलझीं और फिर बस ठहर ही गयीं |  उसकी सादगी और मासूमियत रीना को भा गयी | आते - जाते अब उसकी नज़रें मयंक को तलाशतीं  | मयंक के न दिखने पर  रीना बेचनी महसूस करती | पहले तो उसे लगा मामला एकतरफा है पर फिर उसने नोटिस किया कि  असल में  ऐसा नहीं था | मयंक भी आते-जाते उसे  देखा करता है पर नज़रें मिलते ही वो इस कदर खुद को व्यस्त दिखाता मानों  उसे दीन -दुनिया की कोई खबर ही न हो | पहले तो रीना मुस्कुरा देती थी पर फिर धीरे-धीरे वक्त  बीतने के साथ ही उसे  खीझ होने लगी कि लगभग पहला साल गुजरने को आया पर मयंक ने कभी कुछ कहा ही नहीं | आखिर इतना ज़ब्त भी किस काम का और क्यों ?उसे अब तक ये समझ आ गया था कि मयंक बहुत ही सादा और शर्मीला लड़का है इसलिए उसने खुद ही पहल करने की ठानी | अब वो जानबूझकर मयंक से बातें करने का बहाना तलाश करने लगी | कैंटीन ,लाइब्रेरी या गलियारा कहीं भी आमना-सामना होने पर वो मुस्कुरा देती ....जवाब में उधर से भी संयमित  मुस्कुराहट छलकती | शुरुआत में तो ये मुस्कान शर्मीली थी पर धीरे-धीरे इसमें एक विस्तार और खुलापन आता चला गया और अब हालत ये थी कि मुस्कान के आदान-प्रदान लम्बी -लम्बी बातों में बदल गए थे | दोनों को ही एक दूसरे का साथ लुभाने लगा था ..वे करीब आने लगे थे और अक्सर ही कैंटीन ,लाइब्रेरी या ग्राउंड  में साथ नज़र आते |इसी सब में और दो साल कब निकल गए पता ही नहीं चला | फाइनल इयर कंप्लीट होने के बाद एक  शाम मयंक ने उसे मिलने के लिए कॉफ़ी हाउस बुलाया | कॉफ़ी पीते वक्त दोनों इधर-उधर की हलकी- फुलकी बातें करते रहे | आज रीना को मयंक कुछ खोया-खोया सा लगा | मानो कुछ कहना चाहता है पर कह नहीं पा रहा | रीना ने उसे कुरेदने की बजाय वक्त दिया | कॉफ़ी पीने के बाद वे बाहर निकले और टहलते हुए पास के ही पार्क की तरफ बढ़ चले | एक ऐसी जगह जहाँ हल्का अँधेरा था और स्ट्रीट लाइट कि रौशनी भी छन-छनकर आ रही थी वहां पहुंचकर मयंक रुक गया |   कुछ पलों की चुप के बाद अपनी उदासी समेटते हुए  फीकी मुस्कान के साथ उसने रीना को सिविल सर्विस के परीक्षा की तैयारी के लिए अपने  कानपुर  छोड़कर दिल्ली जाने  के बारे में बताया | रीना चौंक  उठी |  हालाँकि ये तो पहले से ही तय था कि तीन साल की डिग्री की पढ़ाई के बाद उन्हें अलग होना ही पड़ेगा | कम से कम ऐसे रोजाना कॉलेज में मिलने और घंटों बातें कर सकने जैसे हालात  तो नहीं ही रहेंगे पर फिर भी रीना के मन में ये उम्मीद थी कि मयंक इसी शहर में रहेगा और उनका कम ही सही पर मिलना - जुलना हो सकेगा पर अब वो कह रहा है कि वो कानपूर छोड़कर दिल्ली जाएगा | रीना के भीतर एक टीस उठी | यूँ लगा कि उससे लिपटकर उसे मना ले कि वो कम से कम कानपुर छोड़कर न जाए | जो करना है यहीं रहकर करे पर ..........|                दरअसल आज तक दोनों ने ही अपनी असल भावना का इज़हार एक-दूसरे से नहीं किया था ...जरूरत ही नहीं पडी कभी | रीना को लगता था जैसे कह देने से कहीं ये बात छोटी न हो जाय या कह देने से कहीं भीतर रीता सा न लगे और मयंक .एक तो वो था ही शर्मीला दूसरे उसे लगा कि रीना जानती ही है तो कहना क्या  | दोनों ही दोनों का मन समझ गए थे ...उसमें घुल गए थे और उनके लिए इतना ही काफी था | रीना कुछ क्षण चुप रही फिर बस इतना ही पूछा कि जाना जरूरी है क्या ....यहाँ रहकर तैयारी नहीं हो सकती ? ( हालांकि जवाब वो जानती थी और ये भी कि सिविल सर्विस कम्पीट करना मयंक का कितना बड़ा सपना है ) मयंक चुपचाप उसे निहारता रहा और इस बीच आहिस्ता से उन दोनों की आँखों में कब नमी सरक आई उन्हें पता ही नहीं चला |कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद सिर्फ इतना ही हुआ कि भावों के वेग में उन्होंने एक - दूसरे की हथेलियों को थाम लिया | उसमें एक-दूसरे को अपने-अपने हिस्से की ढेरों  आश्वस्ति , उम्मीद और ख्वाब सौंप दिए बिना कुछ कहे | ज़ज्बातों की कशिश उन्हें अलग नहीं  होने दे रही थी पर जाना तो था ही सो धीरे से हाथ छुड़ाकर मयंक ने उसके चेहरे को छुआ और आंसुओं भरी फीकी मुस्कान के साथ वापस मुड गया | रीना कुछ देर वहीँ खडी रही फिर वो भी वापस मुड गयी | शब्दों का कोई करार कोई वादा उनके बीच नहीं हुआ पर फिर भी जो दिल एक दूसरे से जुड़ा था उससे बड़ा तो कोई बंधन ही नहीं होता है | एक ऐसा बंधन जो आपको मुक्ति का प्रछन्न अहसास करवाए |

अब क्योंकि रीना एक अमीर खानदान की बेहद सुन्दर और समझदार बेटी थी  तो ग्रेजुएशन करते ही उसके लिए अच्छे और अमीर घरों से  रिश्ते आने लगे  | माँ-बाप भी चाहते थे कि अब जल्द से जल्द अपनी लाडली को किसी अच्छे और अमीर लड़के से ब्याह कर चिंतामुक्त हो जाएँ | उन्हें क्या पता था कि उनकी लाडली का  मन तो पहले ही कहीं और ,किसी और के प्यार में डूबा हुआ है | इसीलिए अच्छे से अच्छे रिश्तों में भी रीना कोई न कोई नुक्स निकाल ही देती | माँ-बाप समझ नहीं पाते पर बेटी की मर्ज़ी के आगे कुछ कह भी तो नहीं पाते थे | लगातार अच्छे रिश्तों को ठुकराते रहने से उसकी भाभी  को कुछ शक हुआ | उनके पूछने पर रीना भावुक हो उनके कंधे से टिककर नम आँखों और भीगी आवाज़ में सबकुछ बता ले गयी | भाभी को आज रीना बहुत प्यारी लगी | उन्होंने पहली बार महसूस किया कि प्रेम में डूबी हुयी लड़की कितनी मोहक ,कितनी खूबसूरत और कशिश से भरी लगती है | धीरे-धीरे उसकी हथेली थपथपाते हुए उन्होंने रीना को दिलासा दिया कि वो इस बारे में घर के लोगों से बात करेंगी | पहले तो रीना ना-नुकुर करती रही पर फिर उसे भी समझ आया कि कभी न कभी तो ये बताना ही पड़ेगा और अब तो भाभी भी साथ हैं ये सोचकर वो मान गयी |भाभी ने पहले अपने पति यानि कि रीना के भाई से बात की | वो सुनते ही भड़क गए कि एक तो लड़का मिडिल क्लास और ऊपर से कुछ करता नहीं है बस कंपटीशन की तैयारी कर रहा है और फिर मान  लो कि वो सरकारी अफसर बन भी गया तो उसकी इतनी शान ओ शौकत में रहने वाली बहन को कैसे खुश रख पायेगा | उसके रोजमर्रा के खर्चे और ऐश ओ आराम का ध्यान कैसे रख पायेगा ? भाई के कंसर्न से ये बात बिलकुल सही थी इसलिए भाभी ने रीना को बुलाया और कहा कि अपने मन की सारी बातें सारी शंकायें तुम दोनों बातें करके सुलझाओ | भाई रीना पर जान छिडकते थे | छोटी बहन ही नहीं बेटी सा मानते थे इसलिए कुछ भी पूछने में पहले तो हिचके पर फिर लगभग रुखी आवाज़  में ही उन्होंने पूछा " ये कविता क्या कह रही है ? कौन है मयंक ? "उनकी ऐसी आवाज़  सुनकर पहले तो रीना डरी पर फिर हिम्मत करके धीरे-धीरे सबकुछ बता दिया | ये भी कहा कि अगर आपलोग मना करेंगे तो मैं मान जाउंगी  लेकिन  फिर किसी और से भी शादी नहीं करूंगी | उसकी  दृढ़ता भाई ने  उसकी आवाज़ में महसूस की और मन ही मन चौंके | अब रीना उनके सामने जाकर चुपचाप बैठ गयी | भाई को अब इस एक वक्त अपनी छोटी बहन बड़ी असहाय और बड़ी मासूम सी लगी जिसकी आँखें नम थीं और जिसके कहे शब्दों में उनसे उम्मीद | भाई का दिल अंततः पिघल ही गया पर फिर भी जरा रूखे लहजे में ही उन्होंने कहा कि अगर वो सेलेक्ट हो जाता है तो फिर बताना | तब पापा - मम्मी से बात करूँगा और ये कहते -कहते अनायास ही उनकी हथेली रीना के सिर को सहलाने लगी | भाभी मुस्कुरा दीं | समझ गयीं कि आधी जंग जीती जा चुकी है | रीना भी अब कुछ राहत महसूस कर रही थी क्योंकि उसे पता था कि पापा भाई की बात मान ही लेते हैं पर माँ ....सबसे कठिन तो उन्हें मनाना था पर खैर वक्त आने पर उन्हें भी मना ही लेंगे ये सोचकर रीना खुद को समझाने लगी | प्री , मेंस और इंटरव्यू इन सबमें डेढ़-दो साल लगने  वाले थे | ये वक्त रीना ने बड़ी मुश्किल बड़ी बेताबी में गुजारे | हज़ार तरह की आशंकाएं मन को हर वक्त घेरे रहतीं | मन ज्यादा घबराता तो वो भाभी से बातें करने लग जाती | एक वही तो थीं जिनसे वो खुलकर कुछ भी कह सकती थी | रिश्ते अब भी आते थे उसके लिए पर रीना से पहले  ज्यादातर में भाई ही कोई नुक्स निकालकर  मना कर देते | पापा तो ज्यादा ध्यान नहीं देते  पर मम्मी समझ नहीं पा रही थी इनकार की कोई ठीक-ठीक वजह |  इस बार बहुत सोच-समझकर  उन्होंने  ऐसा रिश्ता चुना जिसके लिए उन्हें पूरी उम्मीद थी कि रीना मना नहीं कर सकेगी | वो था कबीर जो कि उनकी सबसे अच्छी सहेली का बेटा भी था और जो रीना का भी अच्छा दोस्त था बचपन का | अभी हाल ही में जर्मनी से लौटा था पढ़ाई करके और आते ही पिता के बिजनेस को बहुत अच्छे से संभाल लिया था | देखने में भी खासा स्मार्ट और हंसमुख , गोरा-चिट्टा नौजवान था | इसे इनकार करना भाई- बहन दोनों के ही लिए ज़रा मुश्किल काम था | अब वे समझ गए कि सही  वक्त आने से पहले ही उन्हें सबको सच बताना पड़ेगा |   ये कमान  संभाली भाई ने | डिनर के बाद बाहर लॉन में सारा परिवार बैठा था तभी कॉफ़ी पीते हुए भाई ने पिता को संबोधित पर दरअसल माँ को सुनाते हुए मयंक की बात छेडी | पिता तो धैर्य से सुन रहे थे पर इतने समय से रीना के इनकार की असल वजह सामने आते ही माँ आगबबूला हो गयीं | एक तो मध्यमवर्गीय घर और दूसरे नौकरीपेशा लड़का , भले ही अफसर हुआ तो क्या और फिर अभी तो बना भी नहीं है , माँ को ज़रा भी पसंद नहीं आया | वे तो अपनी बेटी के लिए ऐसे रिश्ते की कल्पना भी नहीं कर सकती थीं | उनके अनुसार गरीबों के घर वो अपनी बेटी कैसे दे सकती थीं | इसके साथ ही एक बात और थी जो उन्होंने अभी तक घर में किसी को नहीं बताई थी |  उन्होंने अपनी तरफ से रीना और कबीर के रिश्ते की इच्छा अपनी सहेली और कबीर की माँ   अंजली के सामने पहले ही जाहिर कर दी  थी और उन्होंने  ख़ुशी ख़ुशी इसे मान भी  लिया था  |   वे तो बस सही वक्त का इंतज़ार कर रही थीं जिससे कि वे खुद इस बात का ऐलान कर सबको चौंका सकें और फिर सबकी रजामंदी से जिसमें उन्हें कोई शक नहीं था , कबीर और रीना की खूब धूमधाम से ऐसी शादी करें जैसी इस शहर ने पहले कभी न देखी  हो | पर यहाँ तो पासा ही पलटा  हुआ था | रीना ने पहले ही कोई लड़का पसंद कर लिया था और उस पर भी तुर्रा ये कि वे गरीब थे |  चलो मान भी लो कि वो अफसर बन गया तो भी क्या | निश्चित पगार में उनकी बेटी गुजारा कैसे करेगी ? वो जो खुले हाथ खर्च करने की आदी है वो कैसे रह पायेगी ? उनका एक माँ के तौर पर सोचना सही भी था पर रीना जिद्द पर अड़ गयी | साफ़-साफ़ कह दिया कि शादी उसी से करेगी | माँ और बिफर गयीं लेकिन पापा चुपचाप सबकी दलीलें सुनते रहे |  थोड़ी बहुत बहस जो कि लाजिमी थी और  भाई के जोर देने पर ये तय हुआ कि एक मौका देकर देखते हैं | अगर इस बार जो कि पहला ही एटेम्पट है, में उसका सिलेक्शन हो जाता है ,जो कि खासा मुश्किल था ये सब जानते थे , तो ठीक वरना फिर रीना को कबीर से शादी करनी  होगी | इतना अच्छा रिश्ता माँ किसी भी कीमत पर अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहती थीं  | पिता ने कोई मीनमेख तो नहीं निकाला पर कहीं न कहीं वे भी माँ से ही सहमत थे ये सब जानते थे | माँ के इस निर्णय से रीना और आशंकित हो उठी पर फिर भाई की आश्वस्ति पूर्ण नज़रों का सहारा मिलते ही वो शांत हुई | बाद में भाई ने बस इतना कहा कि पहले रिजल्ट आने दो फिर देखते हैं | अब रीना दिन - रात मयंक की सफलता के लिए दुआ करने लगी | बाहर आना-जाना ,शोपिंग करना ,दोस्तों से मिलना तकरीबन सब बंद कर दिया उसने | बस बहुत जरूरी होता तो ही कहीं जाती | सच जानने के बाद वो माँ जो उसे पलकों पर रखती थीं उनका व्यवहार भी जरा सख्त हो गया था रीना के प्रति | कभी-कभी वो किसी और के बहाने रीना को तंज़ भी करने लगीं | दरअसल वो स्वीकार नहीं कर पा रही थीं कि रीना ने एक ऐसे लड़के को पसंद किया है जो मध्यमवर्गीय परिवार से आता है और जो यदि अफसर बन भी गया तो भी रीना को वो सुख-सुविधा नहीं दे पायेगा जिसकी रीना को आदत है | इसके साथ ही उन्हें अपनी बेइज़्ज़ती भी साफ़-साफ़ दिख रही थी जो रीना की शादी के बाद उन्हें महसूस होने वाली थी |  बाकियों की तो छोडो उनकी ख़ास सहेली अंजली ही उन्हें खरी-खोटी सुनाने वाली थी क्योंकि रिश्ता तो वे ही लेकर गयी थीं तो इस रिश्ते के टूटने को अंजली अपना अपमान समझेंगी और किसी भी हाल बख्शेगी नहीं | ये सारी आशंकाएं दुश्चिंता बन हर वक्त उन्हें सताती रहती जिसके प्रभाव से वो रीना के प्रति और कटु हो जातीं | एक तरफ रीना इतने विरोधी परिस्थितियों का सामना कर रही थी वहीँ दूसरी तरफ मयंक को रीना के साथ हो रही इन मुश्किलात का कोई पता नहीं था | रीना चाहती भी नहीं थी कि मयंक को कुछ पता चले |वो चाहती थी कि मयंक सिर्फ अपनी पढ़ाई पर फोकस करे |  कभी-कभार उनकी बात-चीत होती तो  रीना ने ज़िक्र तो दूर कभी मयंक को अपनी परेशानियों का आभास भी नहीं होने दिया | वो हमेशा उसकी हौसला अफजाई करती | 

खैर , राम-राम करके किसी तरह मयंक का प्री और मेंस क्लियर हो गया | अब बारी थी इंटरव्यू की जिसके लिए मयंक ने बहुत तैयारी की थी पर फिर भी थोडा नर्वस तो था ही | जाने से पहले उसने रीना को कॉल किया | रीना ने उसकी हिम्मत बंधाई , उसे विश किया और कायदे से इंटरव्यू देने की हिदायत दी | इधर मयंक तो इंटरव्यू के लिए गया और उधर रीना , वो अपने में कमरे में जाकर दरवाजा अन्दर से बंद करके मयंक के लिए लगातार दुआ करने लगी जब तक मयंक का फोन नहीं आया कि इंटरव्यू हो चुका है | पूछने पर उसने बताया कि वैसे तो ठीक रहा पर वो कोई ख़ास खुश नहीं था | रीना ने उसे ढांढस बंधाया कि चिंता मत करे सब ठीक होगा पर वो खुद अंदर से डर गयी क्योंकि उसे अच्छे से पता था कि अगर उसका सिलेक्शन नहीं हुआ तो माँ को एक और साल के लिए मनाना खासा मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव हो जाएगा | फ़ाइनल रिजल्ट आने तक रीना घोर दुश्चिंताओं में डूबी रही हालांकि चिंतित तो मयंक भी था कि पता नहीं क्या होगा ? रीना जानती थी कि एकमात्र माँ हैं जो नहीं चाहतीं कि मयंक इस बार क्लियर कर ले ताकि वो कबीर से उसकी शादी करा सकें |  गाहे-बगाहे वे इसे जाहिर भी करती रहती थीं  जिसे सुनकर रीना बहुत गुस्सा होती पर मन मसोस कर रह जाती | अजब झुंझलाहट महसूस होती उसे पर वो कुछ कह नहीं पाती थी | एक रोज़ माँ से कुछ बहस हो गयी रीना की तो फिर मयंक से बातों-बातों में उसने कुछ ऐसा कह दिया  कि मयंक भी एकबारगी आशंकित हो गया पर कुछ पूछा नहीं | महीने भर बाद आधी रात के लगभग मयंक का फोन आया | फोन भाई ने उठाया और फिर रीना को आवाज़ दी | हलकी नींद से चौंककर रीना जब फोन के पास पहुंची तो मुस्कुराते हुए भाई  ने फोन उसे थमा  दिया  और सिर पर हलकी थपकी सी देकर चले गए | उलझन में पडी रीना के हेल्लो कहते ही उधर से मयंक की चहकती हुई आवाज़ सुनाई पडी और रीना सब समझ गयी | ख़ुशी के मारे पहले तो आँखें भर आईं .....कुछ बोला ही नहीं गया दोनों से फिर जो दोनों ने बात करनी  शुरू की तो भोर हो गयी | अब  न चाहते हुए भी रीना को फोन रखना पडा क्योंकि पापा  जल्दी उठ जाते थे | मयंक तो जैसे जाना ही नहीं चाहता था ...लगता था कि सारी उम्र वो यूँ ही रीना से बातें  करता रहेगा पर अंततः मजबूरी में ही सही पर उसे भी जाना ही पडा | 

असीम खुशियों ,उम्मीदों और ख्वाबों को पलकों में भरकर रीना सोने गई | ऐसा लगा जैसे कुछ ही पल बीते हों कि तेज़ बहस जैसी आवाजों से रीना की नींद टूटी | घडी देखी तो लगभग आठ बज रहे थे |वो झल्लाकर बाहर निकली ही थी कि सामने माँ को गुस्से में रोते -चिल्लाते देख वो एकदम से सहम गयी | माँ बहुत नाराज़ लग रही थीं  क्योंकि उन्हें पूरी उम्मीद थी कि मयंक का सिलेक्शन पहली ही बार में तो नहीं होगा और अब जब हो गया था तो उन्हें अपनी बेटी का भविष्य मुश्किलों भरा नज़र आने लगा था जो वो बिलकुल स्वीकार नहीं कर पा रही थीं | भाई उनको मनाने की कोशिश कर रहे थे | पापा  हमेशा की तरह ख़ामोशी से चाय पी रहे थे और सब सुन रहे थे |भाभी भी माँ के पीछे उनके कंधे पर हाथ धरे चुपचाप खडी थीं | रीना को देखते ही माँ एक बार फिर फूट पड़ीं | मयंक और उसकी सात पुश्तों तक को नवाजने लगीं | रीना जैसे ही तमतमा कर कुछ कहने वाली थी कि भाभी ने आँख के इशारे से उसे चुप रहने को कहा | रीना चुप हो गयी और पैर पटकती हुयी वापस अपने कमरे में चली गयी | अंततः इस सबका समापन कुछ यूँ हुआ कि एक दिन मयंक अपने माता-पिता के साथ रीना के घर आया | रीना के पिता को मयंक के पद का आभास था | वे जानते थे कि मयंक की हैसियत और उसका रूतबा आगे चलकर क्या होने वाला है इसलिए वे विनम्र बने रहे | पता तो रीना की माँ को भी था पर कबीर की तुलना में वे अपेक्षाकृत सामान्य रंग-रूप और व्यक्तित्व वाले मयंक को किसी भी तरह से मन में अपनी बेटी के लिए स्वीकार  नहीं कर पा रही थीं | यूँ तो सभी सामान्य शिष्टाचार का पालन कर रहे थे पर रीना की माँ बीच-बीच में अपना वैभव जताना नहीं भूल पाई  | भाई-भाभी मिलकर स्थिति सामान्य व् सौहार्द्रपूर्ण बनाये रखने की पूरी कोशिश कर रहे थे पर माँ की तल्खी झलक ही जा रही थी | रीना को माँ  पर बड़ा गुस्सा आ रहा था | समझ तो कुछ-कुछ मयंक भी रहा था पर क्योंकि अब वो इस लायक बन चुका था इसलिए माँ-बाप के सामने रीना की माँ का बार-बार वैभव जाताना या कभी-कभी तल्ख़ हो जाना उसे अच्छा नहीं लग रहा था  | उसका ज़ब्त अब सख्ती से  उसके चेहरे पर पसर आया था  | इन सबसे परे मयंक के माँ-बाप इतना वैभव ,इतना ऐश्वर्य देखकर भौंचक्के से थे | सामान्य बने रहने की कोशिश में वे और मासूम नज़र आ रहे थे | लगभग ठीक - ठाक ही वक्त गुजरा और फाईनली  रीना और मयंक की शादी की बात पक्की हो गयी | सभी बहुत खुश थे सिवाय रीना की माँ के जो इस रिश्ते को बिलकुल पचा नहीं पा रही थीं और मयंक की माँ के जिन्हें इसका कुछ-कुछ आभास हो गया था | कहते हैं न कि स्त्रियों में एक विलक्षण शक्ति होती है आगामी घटनाओं से साक्षात्कार की | घर आकर जब उन्होंने इसका जिक्र किया तो  मयंक भी थोडा अपसेट हुआ पर  फिर पिता जो इन दोनों से ज्यादा व्यवहारिक थे और दुनिया का चलन समझते थे  उन्होंने माँ को समझा लिया | अब मयंक एक बार फिर रीना और अपने प्यार के बारे में सोचकर सपनों में खो गया | 

आने वाले दिनों में जब कबीर और उसकी माँ को इसके बारे में पता चला तो कबीर को बेशक बुरा लगा और तकलीफ हुयी पर फिर भी बड़ा दिल रखते हुए उसने खुद आकर रीना को बधाई दी पर उसकी मम्मी जो अपने बेटे के बारे में सोचकर अपमानित महसूस कर रही थीं उन्होंने फोन करके रीना की माँ को खरी-खोटी सुनाने में कोई कोर-कसर बाकी न रखी | रीना की माँ उनसे तो कुछ नहीं कह सकीं पर उनका सारा गुस्सा ,सारी खीझ अब मयंक और उसके परिवार पर निकलने वाली थी |रीना और परिवार वालों को इसका अंदाजा था इसलिए उन लोगों ने भरसक कोशिश की कि आगे आने वाले आयोजनों में किसी भी प्रकार की बदमजगी न हो | अंततः शादी वाले दिन रीना की माँ ने मयंक के ओहदे और रुतबे को देखा क्योंकि तब तक मयंक की नियुक्ति उसी शहर में कलेक्टर के पद पर हो गयी थी  | मन ज़रा सा पिघला भी पर फिर भी वो कबीर और उसकी माँ वाला किस्सा भुला नहीं पा रही थीं ....मन ही मन दोनों की तुलना कर रही थीं जिसमें हर बार कबीर का ही पलड़ा उन्हें भारी नज़र आ रहा था इसके साथ ही उनके मन में एक फांस और थी कि ओहदा-रुतबा भले हो पर उनकी इतने नाज़ और शान ओ शौकत से पली बेटी को अब रूपये-पैसे हिसाब से खर्चने होंगे | अपनी इच्छाओं से न जाने कितने समझौते करने होंगे |  वे जानती थीं कि उनकी स्वाभिमानी बेटी अब उनसे बिना कारण कभी पैसे नहीं लेगी  | बहुत जिद्दी जो है | पर ये एक माँ का  दिल था जो बेटी के लिए आशंकित था |  अब वो ये भी समझ गयी थीं कि चाहने पर भी वो मयंक या उसके परिवार को नीचा नहीं दिखा सकती थीं क्योंकि पूरे आयोजनों में शिष्टाचार के साथ ही मयंक का जरा सख्त रुख भी उन्होंने अपने प्रति महसूस किया था | खुद उनकी बेटी भी उनलोगों की बेईज्जती बर्दाश्त नहीं करेगी | 

शादी के बाद रीना मयंक के साथ उसके सरकारी बंगले में शिफ्ट हो गयी | बड़े प्यार से उसे सजाया | मयंक के माता - पिता को भी वो अपने साथ रहने के लिए ले आई थी | मयंक और उसके माता-पिता सभी रीना के व्यवहार से बहुत खुश थे | मयंक की माँ के कहने पर एक दिन रीना ने अपने परिवार वालों को डिनर पर बुलाया | सारी व्यवस्था खुद की ये ध्यान में रखते हुए कि उसकी माँ को मीन मेख निकालने का कोई मौका न मिले | जब वे आये तो मयंक ने सहज गर्मजोशी से उनका स्वागत किया | मयंक के माता-पिता भी बड़े सौहार्द्र पूर्ण रहे | बात-बात में वे रीना की तारीफ करते | रीना किचन में जब खाना लगवाने की तैयारी कर रही थी तो उसके पास जाने के बहाने उसकी माँ पूरे घर का चक्कर लगा आईं फिर किचन में आकर पूछने लगीं कि तुम कैसे रहती हो यहाँ ? तुम्हें दिक्कत नहीं होती इतनी गरीबी में ? अरे , तुम लोगों के पास क्रोकरी नहीं है ? क्या इन बर्तनों में खाना खाते हो तुम लोग ? अच्छा ये तो बताओ कि उसके माँ - बाप को क्यों लेकर आ गयी हो ? बेमतलब का झंझट | रीना जो इन सब बातों को टालना चाहती थी और डर रही थी कि कहीं ये सब बातें मयंक या उसके माँ -बाप न सुन लें | साथ ही वो उन नौकरों के सामने भी कुछ कहना नहीं चाहती थी जो किचन में काम कर  रहे थे पर माँ थीं कि जैसे चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थीं | पर अब जब उसके बर्दाश्त  के बाहर हो गया  तो दबी आवाज़ में ही रीना ने कस कर माँ को झिडक दिया कि बस भी करो माँ ....मेरी जिन्दगी मेरी ख़ुशी भी कुछ है या नहीं ? हर चीज को आप पैसे से ही क्यों तौलती हो ....इतना बुरा लग रहा है तो फिर आगे से मत आना | रीना की माँ तो मानो ये सुनकर सन्न रह गयीं | उन्हें बिलकुल उम्मीद नहीं थी कि रीना अपने घर में उनसे इस तरह बात करेगी | आखिर गलत क्या कहा उन्होंने ....अपनी बेटी कि फ़िक्र ही तो कर रही हैं बस और बेटी है कि समझ ही नहीं रही है | वो मायूस होकर चली गयीं | उनके जाते ही मयंक की माँ किचन में आई | रीना उनका चेहरा देखकर ही समझ गयी कि उन्होंने सब सुन लिया है | रीना की आँखों में झेंप उतर आई और उसने सर झुका लिया पर मयंक की माँ ने ऐसा जताया मानो जैसे उन्होंने कुछ सुना ही न हो | प्यार से रीना की पीठ सहलाई और खाने का प्रबंध देख मुस्कुराते हुए रीना की तारीफ़ की और फिर बाहर आ गयीं | पूरा डिनर कायदे से निबट गया | उनलोगों के जाने के बाद भी मयंक की माँ ने मयंक से कुछ नहीं कहा था | रीना का मन अपनी सास के प्रति श्रद्धा और प्यार से भर गया | हालाँकि रीना का उतरा हुआ चेहरा देखकर मयंक को इस बात का कुछ तो अंदाजा हो गया था पर उसने कुछ पूछा नहीं | वो रीना को शर्मिंदा नहीं करना चाहता था पर इतना जरूर समझ गया था कि रीना की माँ ने कुछ ऐसा कहा है जो नहीं कहना चाहिए था | इसके बाद भी कई मौकों पर जब भी उनका मिलना होता बेटे-बहू और पति के लाख समझाने के बावजूद भी वो कुछ न कुछ ऐसा बोल ही देतीं या जता देतीं जो मयंक को बड़ा अपमानजनक लगता | एक बार तो मयंक और रीना की सालगिरह की पार्टी में ही उन्होंने सबके सामने कह दिया कि , 'कितना अच्छा होता अगर उनकी बेटी-और दामाद उनके साथ ही रहते | आखिर इतना बड़ा और महलों जैसा घर है उनका | हर सुख-सुविधा से भरपूर और यहाँ ये छोटा सा सरकारी बंगला | उन्हें तो अपनी बेटी के लिए बड़ा अफ़सोस होता है पर क्या करें जब प्रेम विवाह कर ही ली है तो निभाना तो पड़ेगा ही न ? 'इसके बाद वो गर्व से मुस्कुरानेलगीं  | हालांकि  ये बात उन्होंने महिलाओं के बीच ही कही थी पर वहां मयंक कि माँ भी बैठी थीं | बाकी अफसरों की बीवियां मुस्कुराने लगीं और फिर एक दो ने तो हँसते हुए टिपण्णी भी कर दी कि हाँ रीना , आप लोगों को वाकई आपकी माँ के घर जाकर रहना चाहिए | वैसे भी घर जमाई बनने में  आजकल कोई बुराई थोड़ी न है | मयंक की माँ का चेहरा धूमिल हो गया पर रीना ,उसे तो जैसे काठ मार गया हो | उसने जलती हुयी नज़रों से अपनी माँ की तरफ देखा | उसकी माँ जो अब तक मुस्कुराकर सबकी बातों का आनंद ले रही थीं अचानक उनकी मुस्कान गायब हो गयी | वे समझ गयीं कि उनसे इस बार बड़ी गलती हो गयी है इसलिए वे जल्दी ही अपनी तबियत का बहाना बनाकर वहां से चली गयीं | रीना या माँ ने तो मयंक से कुछ नहीं कहा पर क्योंकि ये सारी बातें रीना की माँ ने मयंक के कलीग्स की बीवियों के सामने कही थी तो दो-चार दिनों के अन्दर ही मजाक के लहजे में उसे सारी बात अपने  सहयोगियों से पता चल गई  | मयंक अपमान से तिलमिला उठा | ऑफिस में तो कुछ नहीं बोला पर पिछले एक साल से लगातार आर्थिक रूप से कमतर होने का जो अहसास उसे निरंतर कराया जा रहा था वो आज बेकाबू हो गया | घर आकर उसने बेहद क्रुद्ध लहजे में रीना से इस बाबत पूछा | रीना उसका ये रूप देखकर सहम गयी | वो जानती थी कि उसकी माँ उसके और मयंक के बीच असंतोष की एक बड़ी वजह बनती जा रही हैं पर वो क्या करे | उन्हें इतना समझाती है पर वो मानती ही नहीं | अब माँ हैं तो इससे ज्यादा क्या किया जा सकता है ? रीना की आँखों में क्षोभ और विवशता के आंसू आ गए पर आज न जाने क्यों पहली बार मयंक का दिल नहीं पिघला जबकि वो जानता था कि इसमें रीना की कोई गलती नहीं है | मयंक की माँ ने बीच बचाव करके मामला शांत किया | अपने बेटे को सख्त ताकीद भी की कि वो रीना को कुछ न कहे और आइन्दा वो नहीं चाहतीं कि मयंक रीना से कभी ऊँची आवाज़ में बात करे या उसका ज़रा सा भी अपमान करे | सबकुछ जानते समझते भी इस बात को लेकर मयंक दो-तीन दिनों तक ख़ासा अपसेट रहा | वो रीना के माँ की पसंदगी और नाराजगी दोनों समझता था पर अब जब शादी हो ही चुकी है तो फिर वो क्यों नहीं सच स्वीकार कर लेतीं और अपनी बेमतलब की दखलंदाजी बंद कर देतीं ? वो क्यों नहीं अपनी बेटी का सुख देख-समझ पाती हैं ? यही सब सोच-सोचकर उसका सर दुखने लगा  पर अब  बहुत हो चुका | अब  उसने इसका कोई मुकम्मल हल निकालने की ठानी | बहुत सोच-विचारकर उसने कुछ निर्णय लिया और फिर डिनर के बाद जब रीना कमरे में आई तो मुस्कुराकर उसकी तरफ देखा और उसे अपने पास बुलाया | रीना पहले तो चौंकी फिर उसकी बाहों में ढह  कर फूट-फूटकर रोने लगी | मयंक धीरे-धीरे उसके बाल सहलाता रहा | उसके माथे को चूमता रहा | रीना सुबकते हुए बोली कि अब वो नहीं समझतीं तो मैं क्या करू ...मेरी माँ हैं ..उन्हें भगा भी तो नहीं सकती न | मयंक उसकी हथेलियों को चूमता हुआ बोला ...कोई बात नहीं ...सब ठीक हो जाएगा तुम फ़िक्र मत करो और इसके साथ ही उस रात आंसुओं और मनुहार के बीच उनके बीच के  सारे गिले-शिकवे धुल गए | अगले दिन सुबह दोनों नार्मल और खुश नज़र आ रहे थे ये देखकर मयंक के माता-पिता ने भी राहत की सांस ली क्योंकि उनसे भी बच्चों का अबोलापन सहन नहीं हो रहा था |

उस दिन मयंक ने ऑफिस पहुँचते ही अपने तबादले के लिए एक अर्जी लिखी और भिजवा दी | उसे उम्मीद के साथ ही ये यकीन भी था कि बस थोड़ी सी दूरी सबकुछ ठीक कर देगी | इस बात को तकरीबन हफ्ता भर हो चुका  था और बस आजकल में ही ऑर्डर आ जाने की उम्मीद थी | 

आज मयंक  रीना की बात का कोई जवाब देता उससे पहले ही सहायक ने आकर बताया कि फोन आया है | मयंक तेजी से ड्राइंग रूम की तरफ बढ़ा  जहाँ फोन रखा था | सामने से किसी ने कुछ कहा और मयंक के चेहरे पर चमक आ गयी | फोन रखकर वो सीधे  रीना के पास गया और उसका माथा चूमते हुए बोला , हाँ जरूर चलेंगे | सोच रहा हूँ कि पार्टी में मम्मी  - पापा को भी साथ ले चलूँ ...ठीक रहेगा न ...और हाँ भाभी के लिए कोई अच्छा सा गिफ्ट खरीद लेना ये कहकर मयंक मुस्कुराते हुए ऑफिस के लिए निकल गया | रीना थोड़ी चकित , थोड़ी भ्रमित होकर उसे देखती ही रह गयी | आज उसे मयंक का ये व्यवहार समझ नहीं आया पर जहन पर ज्यादा जोर न डालते हुए हलके असमंजस में वो भी सास-ससुर के कमरे की तरफ बढ़ चली | 

















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