जिस्म टंका है सूरज पर
बेचैनियां भी सरहदी नहीं रहीं ,
बादलों सी ख्वाहिशें
सहरा सी किस्मत
आवारगी हवाओं की
दर्द पहाड़ों सा ,
और तुम
अब भी
बस चाँद से नज़र आते हो
हमनफ़ज मेरे !!
अर्चना राज
बेचैनियां भी सरहदी नहीं रहीं ,
बादलों सी ख्वाहिशें
सहरा सी किस्मत
आवारगी हवाओं की
दर्द पहाड़ों सा ,
और तुम
अब भी
बस चाँद से नज़र आते हो
हमनफ़ज मेरे !!
अर्चना राज
No comments:
Post a Comment