Thursday, 1 November 2012

वेदना

जिस्म टंका है सूरज पर
बेचैनियां भी सरहदी नहीं रहीं ,

बादलों सी ख्वाहिशें
सहरा सी किस्मत
आवारगी हवाओं की
दर्द पहाड़ों सा ,

और तुम
अब भी
बस चाँद से नज़र आते हो
हमनफ़ज मेरे !!


     अर्चना राज 

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