नशा है मूर्तियाँ गढ़ना भी
जुनून ...जिद्द ...पागलपन
बिना रक्त मांस के एक इंसानी जिस्म
बिना रीढ़ के सीधी खड़ी परिकल्पना
छेनी से उकेरी आँखों मे प्रेम की तलाश
एक निहायत बेमानी कोशिश ,
अनगढ़,अपरिचित ,अपरिपक्व शब्द गूंज उठते हैं
मूर्तियों मे जान है
बावजूद इसके की सांस नहीं है ,
ये खुद को खुदा मानने की पहल है
या फिर खुदा को आईना दिखने की हिकमत
नशा हद से गुजर जाये तो गुनाह हो जाता है
बेशक वो इबादत का ही क्यों न हो !!
अर्चना राज
जुनून ...जिद्द ...पागलपन
बिना रक्त मांस के एक इंसानी जिस्म
बिना रीढ़ के सीधी खड़ी परिकल्पना
छेनी से उकेरी आँखों मे प्रेम की तलाश
एक निहायत बेमानी कोशिश ,
अनगढ़,अपरिचित ,अपरिपक्व शब्द गूंज उठते हैं
मूर्तियों मे जान है
बावजूद इसके की सांस नहीं है ,
ये खुद को खुदा मानने की पहल है
या फिर खुदा को आईना दिखने की हिकमत
नशा हद से गुजर जाये तो गुनाह हो जाता है
बेशक वो इबादत का ही क्यों न हो !!
अर्चना राज
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