Monday, 3 December 2012

जाफरानी

जाफरानी इश्क है मेरा - तुम्हारा
यूं तो तन्हा बर्क है बेकैफ है
घुल अगर जाये तो हो अमृत सरीखा ,

दूर तक फैली चिनारों की कतारें
पूरे डल मे जैसे फैली हों बहारें
हर तरफ बस इश्क ही बिखरा हुआ है
है कुरान-ए-पाक और है इश्क गीता
इन हवाओं मे इबादत गूँजती है
हर नज़र लगती है जैसे सूफियाना ,

ख्वाब खुशबू से यहाँ बिखरे पड़े हैं
है सतह रेशम के इक कालीन जैसी
ज़र्रे-ज़र्रे पे मेरी सांसें हैं बेकल
थामने हर चाप जो गूँजेगी तुझसे ,

हैं बड़ी मासूम सी पाबन्दियाँ भी
चिलमने तहज़ीब सी हैं
दायरा दहलीज़ है
बेसबब कमबख्त ये सरहद हमारी
पार जिसके है चमन मेरा तुम्हारा ,

शाम कहवे सी कसैली हो भले ही
रात तो बस खीर सी मीठी ही होगी
 चाँद के झूले मे जब शबनम गिरेगी
हर लबों पे खिल उठेगा फिर तबस्सुम

इसलिए ही जाफरानी इश्क है ये
और रवायत भी यहाँ सदियों पुरानी !!


बर्क ----बिजली

बेकैफ ---- बेमज़ा




 अर्चना राज












3 comments:

  1. बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
    बहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !

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