Tuesday, 29 March 2016

प्रेम

प्रेम
तमाम काजल को सुनहरा कर देता है
आंसुओं को मीठा
चुभलाता रहता है दर्द को
जब तक बीच की गिरी स्वाद में नहीं उतरती
और नहीं उतरता चटपटापन मुस्कानों में ,

प्रेम ,
धूप की जिद्द को शाम में बदल देता है
तीखी लहर से तैयार करता है दस्तावेजों को
उम्र के आखिरी दौर में पढ़े जाने के लिए
कुछ लम्हों को भी स्थिर कर देता है
जिन्दगी के कैमरे में स्टिल फोटोग्राफी की तरह
कि जब जब उदासी सतह तक उतरे
तब तब रचा जा सके एक सुंदर पैनोरमा इफेक्ट
झुर्रियों के आर-पार ,

प्रेम ,
मुश्किल विषयों को आसन कर देता है
अंकगणित के मायने समझाता है
जब बार बार रूठना उँगलियों पर न गिना जा सके
और रेखागणित तो विषयान्तर से ही झलक जाता है
जब पैरों के नीचे की मिटटी पाँव की छाप होने लगे
या कहीं आंचल का किनारा
इंडेक्स फिंगर में उतर दे एक गहरा निशान


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