Tuesday, 29 March 2016

कुछ क्षण

कुछ शब्द रात के माथे पर खुदे है
कुछ चाँद के सीने पर
कुछ सितारों के आँचल पर
तो कुछ परछाई के भीतर,
तासीर सबकी पर एक सी
थोड़ी गरम, थोड़ी तीखी
कुछ कसैली सियाह सी,
कि मानो इश्क ने खुद को
कहवे सा बना डाला है
पीती हूँ जिसको घूँट -घूँट मैं
पीता है जिसको घूँट -घूँट वो,
जिन्दगी की तरह जीने के लिए।।


शाम की हथेली में दर्द घिस दिया है
शाम पीली हो उठी
कि जैसे शादी में हल्दी की रस्म ,
शाम खुद ब खुद निखरने लगी 
शाम खुद ब खुद डरने लगी ,
शाम भ्रम में थी
दर्द और हल्दी के बीच ,

अमूमन तकलीफ कम हो जाती है हल्दी के बाद
पर यहाँ जायका कुछ कसैला निकला
कुछ क्या बेहद ,
शाम धीरे-धीरे स्याह हो उठी
मानो आज दर्द ने कब्ज़ा लिया हो
तमाम पीले सुकून को
जो कभी अमलतास सा होता था
तो कभी सूरजमुखी सा ,
शाम फिर भी हंस रही है
चाँद काला पड गया है !!

उदासी को निचोड़कर भर लिया है बोतल में
जब-तब छुआ करती हूँ
तब भी जब मन हंस रहा होता है
और तब भी जब मौसम हंस रहा होता है ,
कभी - कभी दिन के खाली पन्ने पर कुछ उकेर देती हूँ
गुडहल का लिसलिसापन मिलाकर
या चांदनी की कुछ पंखुड़ियां चिपकाकर ,
कभी-कभी रात में भी धूप चुनती हूँ
तमाम सितारों के झुण्ड गर्मी में बदल देती हूँ
तमाम बेचैन बिखरी किरणों को कैमरे की फ़्लैश लाइट में ,
इन चुनिन्दा पलों में सहेजी उदासी खूब काम आती है
कि जब अक्स खुलकर मुस्कुरा रहा होता है
उदासी अंतस में सहारे सी हो जाती है !!








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