Saturday, 23 June 2012

कहाँ हो तुम

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कहाँ हो तुम ...किस अनजानी सतह पर ठहरे  हुए हो
कौन सी है वो दहलीज़ जो तुम्हें आने की इजाजत नहीं देती
या फिर तुमने ही उसे कभी पार नहीं करना चाहा ,

तुम्हारी उम्मीद मे तो
ये सड़क भी अब नदी मे तब्दील हो गयी है
शायद उससे भी मेरी बेचैनीयों की तपिश झेली नहीं गयी
या फिर ये भी हो सकता है कि
मेरे दर्द ने उसे इश्क बनकर बहने को मजबूर कर दिया हो ,

रात के आसमां से भी स्याही बिखरती रही है
बूंद दर बूंद
और बड़ी सख्ती से नामंजूर  कर दिया है उसने
बादलों के थमे रहने की गुजारिश को
शायद इसलिए ही सुबह की रौशनीमे
मुझे खुद की शक्ल गुजरे वक्त सी नज़र आई
जिसके पैरहन पर जगह जगह
तकलीफों के पैबंद चस्पाँ नज़र आते हैं
और उस दुल्हन की तरह भी
जो एक लंबे   इंतज़ार के बाद अचानक
सफ़ेद लिबास मे नज़र आने लगी है ,

क्यों नहीं आए तुम ..कहो तो
की यहाँ तुम्हारे इंतज़ार मे
हर लम्हे ने इक सदियों की उम्र गुजारी है
 और मेरी चाहत भी मेरे उम्र के दरारों से ही नज़र आने लगी है ,

कहाँ हो तुम
की तुम्हें नज़र नहीं आया
मेरा हवाओं मे बेसाख्ता  तुम्हारा नाम लिखते रहना
या फिर आंसुओं से तुम्हारी तस्वीर बनाना ,

आ जाओ की अभी भी
उम्र का इक हिस्सा बाकी है
जहां मै तुमको अपनी पनीली आँखों
और कंपकंपाते जिस्म मे जी लेना चाहती हूँ
 गुनगुनाना चाहती हूँ
की इक उम्र अभी बाकी है
इक दौर अभी बाकी है!!



          अर्चना राज !!

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