बहुतेरे सपने यूँ ही राख हो जाते हैं कोई आकार लेने से पहले
क्योंकि सुलगती भूख हमें सपने देखने की इजाज़त नहीं देती
और अक्सर उम्मीदें भी उलझनों में जकड़ी हुई नज़र आती हैं
कि जिसे सुलझाने का कोई सिरा कभी दिखाई नहीं देता ,
हमारा इंसान होने का गर्व
पहले ही कदम पर बिखरकर रेत हो जाता है
और यही स्वतः स्वीकार्य जीवन परम्परागत चुप्पी बनकर
हमें हर रोज सहते रहने को विवश करता रहा है ,
सदियों की सुप्त मानसिकता कछुओं की शक्ल में होती है
और इस मजबूरी और घुटन में
कई पीढियां खुद ही दम तोड़ती आई हैं
बेहद स्वाभाविकता से... बिना कोई आवाज़ उठाये ,
पर अब वक्त आ गया है
कि हमें जगना होगा .. हमें लड़ना होगा
अपने सपनो , अपनी उम्मीदों
और उन अनगिनत रातों के लिए भी
जिसे हमने भूख से जूझते हुए काटी हैं
और उस खोये हुए सम्मान के लिए भी
जो एक इंसान होने पर स्वतः ही मिल जाया करता है
पर जिसे एक इंसान होते हुए भी हमने यूँ ही गँवा दिया है !!
अर्चना राज
क्योंकि सुलगती भूख हमें सपने देखने की इजाज़त नहीं देती
और अक्सर उम्मीदें भी उलझनों में जकड़ी हुई नज़र आती हैं
कि जिसे सुलझाने का कोई सिरा कभी दिखाई नहीं देता ,
हमारा इंसान होने का गर्व
पहले ही कदम पर बिखरकर रेत हो जाता है
और यही स्वतः स्वीकार्य जीवन परम्परागत चुप्पी बनकर
हमें हर रोज सहते रहने को विवश करता रहा है ,
सदियों की सुप्त मानसिकता कछुओं की शक्ल में होती है
और इस मजबूरी और घुटन में
कई पीढियां खुद ही दम तोड़ती आई हैं
बेहद स्वाभाविकता से... बिना कोई आवाज़ उठाये ,
पर अब वक्त आ गया है
कि हमें जगना होगा .. हमें लड़ना होगा
अपने सपनो , अपनी उम्मीदों
और उन अनगिनत रातों के लिए भी
जिसे हमने भूख से जूझते हुए काटी हैं
और उस खोये हुए सम्मान के लिए भी
जो एक इंसान होने पर स्वतः ही मिल जाया करता है
पर जिसे एक इंसान होते हुए भी हमने यूँ ही गँवा दिया है !!
अर्चना राज
Didi its really fantastic
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