एक पूरी उम्र के बूढ़े प्रश्नचिन्ह सी
खड़ी हूँ मै तुम्हारे सामने
बेहद ख़ामोशी से ,
तुम्हारी नसों में मेरा मौन
दर्द की लकीरों सा बिखर रहा है ,
कोई सवाल ..कोई शिकायत अब नहीं
मौजूद है एक गहरी अंतर्वेदना की चुप
हमारे दरमियान ,
पर प्रेम वस्तुतः अब भी है
शाश्वत ..अनंत ...अविरल !!!
अर्चना राज
खड़ी हूँ मै तुम्हारे सामने
बेहद ख़ामोशी से ,
तुम्हारी नसों में मेरा मौन
दर्द की लकीरों सा बिखर रहा है ,
कोई सवाल ..कोई शिकायत अब नहीं
मौजूद है एक गहरी अंतर्वेदना की चुप
हमारे दरमियान ,
पर प्रेम वस्तुतः अब भी है
शाश्वत ..अनंत ...अविरल !!!
अर्चना राज
No comments:
Post a Comment