Monday, 27 August 2012

प्रेम

एक पूरी उम्र के बूढ़े प्रश्नचिन्ह सी
खड़ी  हूँ मै तुम्हारे सामने
बेहद ख़ामोशी से ,

तुम्हारी नसों  में मेरा मौन
दर्द की लकीरों सा बिखर रहा है ,

कोई सवाल ..कोई शिकायत अब नहीं
मौजूद है एक गहरी अंतर्वेदना की चुप
हमारे दरमियान ,

पर प्रेम वस्तुतः अब भी है
शाश्वत ..अनंत ...अविरल !!!




      अर्चना राज 

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