देह खंडित
आत्मा भी ,
स्वप्न तार-तार हैं ,
हर कोशिश जिंदा रहने की
अब यहाँ बेकार है ,
प्यास को थोड़ा गुनो
भूख को तुम मत चुनो
प्रक्रियाओं की जटिलता कह रही जो वो सुनो ,
हम नहीं इंसान है
भीतर हमारे जान है
बेबसी के बोझ से ढकते हम उनकी आन हैं ,
मुट्ठियों मे है लहू
है तक़ाज़ा की सहूँ
जिस्म की बेचारगी मै भला किससे कहूँ ,
मै हूँ इक आँसू खुदा का सूख जाता हूँ स्वयं ही
मै हूँ इक नेमत खुदा की खत्म हो जाता हूँ खुद ही ,
मै हूँ इक मजबूर बच्चा
मै हूँ इक लाचार बच्ची
मै हूँ इक बूढ़ा अपाहिज
मै भी हूँ ---------------
पर कौन हूँ मै ,
देह खंडित
आत्मा भी
स्वप्न तार-तार है ,
हर कोशिश जिंदा रहने की
अब यहाँ बेकार है !!!
अर्चना राज़
आत्मा भी ,
स्वप्न तार-तार हैं ,
हर कोशिश जिंदा रहने की
अब यहाँ बेकार है ,
प्यास को थोड़ा गुनो
भूख को तुम मत चुनो
प्रक्रियाओं की जटिलता कह रही जो वो सुनो ,
हम नहीं इंसान है
भीतर हमारे जान है
बेबसी के बोझ से ढकते हम उनकी आन हैं ,
मुट्ठियों मे है लहू
है तक़ाज़ा की सहूँ
जिस्म की बेचारगी मै भला किससे कहूँ ,
मै हूँ इक आँसू खुदा का सूख जाता हूँ स्वयं ही
मै हूँ इक नेमत खुदा की खत्म हो जाता हूँ खुद ही ,
मै हूँ इक मजबूर बच्चा
मै हूँ इक लाचार बच्ची
मै हूँ इक बूढ़ा अपाहिज
मै भी हूँ ---------------
पर कौन हूँ मै ,
देह खंडित
आत्मा भी
स्वप्न तार-तार है ,
हर कोशिश जिंदा रहने की
अब यहाँ बेकार है !!!
अर्चना राज़
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