Thursday, 4 April 2013

बेबसी

देह खंडित
आत्मा भी ,
स्वप्न तार-तार हैं ,

हर कोशिश जिंदा रहने की
अब यहाँ बेकार है ,

प्यास को थोड़ा गुनो
भूख को तुम मत चुनो
प्रक्रियाओं की जटिलता कह रही जो वो सुनो ,

हम नहीं इंसान है
भीतर हमारे जान है
बेबसी के बोझ से ढकते हम उनकी आन हैं ,

मुट्ठियों मे है लहू
है तक़ाज़ा की सहूँ
जिस्म की बेचारगी मै भला किससे कहूँ ,

मै हूँ इक आँसू खुदा का सूख जाता हूँ स्वयं ही
मै हूँ इक नेमत खुदा की खत्म हो जाता हूँ खुद ही ,

मै हूँ इक मजबूर बच्चा
मै हूँ इक लाचार बच्ची
मै हूँ इक बूढ़ा अपाहिज
मै भी हूँ ---------------
पर कौन हूँ मै ,

देह खंडित
आत्मा भी
स्वप्न तार-तार है ,

हर कोशिश जिंदा रहने की
अब यहाँ बेकार है !!!



अर्चना राज़

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