तुम्हारा जाना तो पूर्वनिश्चित था
मेरा न जाना भी
फिर भी बिछड्ने की ऐसी प्रक्रिया का चयन तो नहीं किया था हमने
कि भीगी पलकों मे अंतिम अक्स का भी आसरा न रहे
फिर क्यों ,
आवाज़ की सरहद पार से बदहवास हवाओं ने खबर दी मुझे
तुम्हारे यूं चले जाने की
बिना कुछ कहे और बिना कुछ सुने भी
मै स्तब्ध हो उठी ------- कुंठित होने की हद तक
पाँवों मे पत्थर उग आए थे ,
बन्दिशों के पुल पर भाप की चिलमन के इस छोर पर तुम थे
दूसरे पर मै
आहत ----मौन -----पारे सी बिखरती हुयी
दर्द लावे सा फूट पड़ा था रगों मे बिलखते हुए
सिसकियों ने फिर भी खुद को अभी टूटने नहीं दिया
तुम्हारा प्रेम अपने निर्देशों सहित अपना पूरा हक रखता है मुझ पर ,
तुम्हारे दूर होते कदमों के निशान चूम भी नहीं पाऊँगी
कि सड़क बर्फीली है और पत्तियों से छनकर आती हवाएँ बेहद तप्त
इनमे मेरी बेचारगी की आहों का सैलाब जो घुला है
पर अपनी पीठ पर दो नज़रों मे गंगा सा छलकता अनंत प्रेम अग्नि सा महसूसना
कि यही अब तुम्हारी धरोहर है ----- मेरी भी
तमाम उम्र के लिए ,
मजबूरियाँ भी कई बार ज़िंदगी का रुख तय करती हैं
हमनफ़ज मेरे !!
अंतर मन को छेदती चीरती उतर जाती है हर लफ्ज सिने में , बहुत उम्दा।
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