Wednesday, 25 September 2013

विरह

बेहद सुकून से कुछ चुनिन्दा दर्द चुने मैंने -----पिरोया उन्हें तारों मे
और सहेज लिया सीकर ....नसों मे .... रक्तकणों मे ,

तुम्हारे जाने पर उन क्रमशः दूर होती पदचापों का संगीत भी बुना
धुने तैयार कीं  ----- पर कमबख्त वायलिन ही टूट गयी उसे कहने मे
कह पाना शायद मुश्किल होता है -------जीवन जीने की क्रियात्मकताओं के बीच
फिर भले ही वो टूटन से क्यों न उपजी हो,

खामोशियाँ हर सिरे को अंदर ही अंदर उलझाकर ज़ख़्मी करती रहती हैं
निरंतर-------बड़ी पेचीदगी से 
पर जोड़ने की हर कोशिश यहाँ तेज़ाब से होकर गुजरती
और  स्वाभाविकतः नष्ट होती रही है ,

अनंत खाली वक़्त को ईंटों मे परिवर्तित कर एक खूबसूरत पुल का निर्माण भी किया
कि गर तुम लौटना चाहो तो रास्ते गुम होने का बहाना शेष न रहे 
तकलीफ का हर लम्हा यहाँ तरल सीमेंट सा था
सुखाने को अथाह उम्मीदों की तेज़ गर्म धूप तो थी ही 
दर्द रचनात्मक था मेरा ,

अब भी साँसों की सतहों पर जीवन गीत का निर्माण करती रहती हूँ
बड़ी कोशिशों से -----संभल-संभलकर
हर शब्द बिखर जाने का खतरा है
कि हर शब्द चंचल हवाओं की आवारगी से जो बना है 
बेहिसाब बेचैनीयों को थामे ,

उम्र अब इस मोड पर है जहां उम्मीदें चरागों सी है
झोंके हवा के तेज़ हैं और हथेलियां कमजोर कि ढेरों झुर्रियां उभर आई हैं
दर्द मे भी ------उम्मीद मे भी
हमनफ़ज मेरे !!
























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