ये कौन है ?
घर की साफ़-सफाई के लिए जब नौकरानी आई तो उसके साथ एक छोटी सी लगभग ८-१० साल की बच्ची भी जो देखने में ६-७ से ज्यादा की नहीं लग रही थी ...आई थी ...सांवली सी पर खूब अच्छे से धोये गए कपड़ों को पहने ...तेल लगाकर करीने से बांधे गए बालों के साथ वो शर्मीली बच्ची अपने कपडे में ही अपनी उंगलियाँ छिपाते अपनी माँ के पीछे खडी हो गयी थी जिसे देखकर ये पूछा मैंने .
मैडम जी , ये मेरी बेटी है ...अब मेरे साथ ही रहेगी ...इतना कहकर आमतौर पर कम ही बोलने वाली गंगा ने उसे वहीँ चुपचाप बैठने का इशारा किया ..वो ख़ामोशी से बैठ गयी पर उसकी नज़रें पूरे घर में घूम रही थीं ..जब उसने मुझे खुद को देखते पाया तो अनायास ही नज़रें झुका लीं .....मैंने पूछा .....बिस्किट खाओगी ? ....वो मेरी तरफ देखने लगी पर बोली कुछ नहीं ..उसकी नज़रें अब अपनी माँ को ढूंढ रही थीं ( शायद सहमती के लिए )
मैंने उसे कटोरी में 4-5 बिस्किट लाकर दिए उसने चुपचाप हाथ बढाकर ले लिया ...सामने रखकर बैठ गयी ...मैंने कहा ...खा लो ...वो एक बिस्किट उठाकर खाने लगी ..खाने क्या लगी बस कुतरने लगी ...फिर मै भी अपने काम में लग गयी और वो वहीँ बैठी रही ..फिर उसकी माँ काम ख़त्म करके जाने लगी तो उसके साथ हो ली ... इसके बाद वो अक्सर मेरे यहाँ आती ...घर के छोटे-मोटे काम कर देती ..फिर आराम से बैठकर खाती और टीवी के सामने पालथी मारकर बैठ जाती ...उसे गाने बहुत पसंद थे ...सुनती और खुश होती .....बचपन का चुलबुलापन पूरी तरह मौजूद था उसमे पर कभी कभी मजबूरी की परतों से ढंका हुआ .
वो आमतौर पर खुशमिजाज़ थी ...हंसती रहती थी पर कहीं गहरे उसे ये अहसास था कि वो गरीब है ...उसकी माँ दिन भर काम करती है तभी पेट भर खाने का इंतजाम हो सकता है और एक छोटा भाई भी तो है जिसकी देखभाल करनी है ...इस अहसास से शायद वो कुछ जल्दी ही बड़ी होने लगी ...समझदार होने लगी ...मैंने गंगा से कहकर उसका और उसके भाई का दाखिला स्कूल में करवा दिया पर उसे शायद पढने से ज्यादा जरूरी काम करना लगा हो कि वो अक्सर कोई न कोई काम करके कुछ पैसे कमाने कि जुगत में रहने लगी ....स्कूल से गैरहाजिरी की शिकायतों पर उसने कभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर जब गंगा को पता चला तो वो बहुत नाराज़ हुयी ...उसकी पिटाई भी कि फिर जब अगले दिन उसे और उसके भाई को स्कूल भेज कर काम पर आई तो गंगा की आँखों में आंसूं थे ...मैंने पूछा , क्या हुआ ? बोली मैडम जी , क्या बताऊँ ....पेट काटकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं ....सोचा थोडा पढलिख लेंगे तो कुछ अच्छा काम मिल जाएगा ....मेरी तरह झाड़ू-बर्तन नहीं करना पड़ेगा पर इस लड़की को तो समझ ही नहीं आता ...मेरे पीछे से किसी न किसी काम पर चली जाती है ...स्कूल नहीं जाती ,,,शिकायत आती है जब तो मुझे पता चलता है ...कल तो खूब मारे हैं उसको और भेजे हैं स्कूल ..इतना कहकर रो दी ...बच्ची को पीटने का दुःख उसको बच्ची से कहीं ज्यादा हो रहा था पर फिर भी वो कुछ भी करके उसे पढ़ाना चाहती थी जिससे उसे तो कम से कम ये जिल्लत भरी जिन्दगी न जीनी पड़े ...कोई भी ढंग का काम करके इज्ज़त से जी सके ....मैंने कहा ...तुमने मारा क्यों ...समझा देतीं ...तो वो फट पडी ...मैडम जी समझाया तो कितनी ही बार था पर वो समझे तब न ...वो कहती है कि अम्मा ... हम भी काम करेंगे तो तुम्हारा बोझ कुछ तो हल्का हो जाएगा न ....हम पढ़ भी लेंगे और काम भी कर लेंगे ..तुम पप्पू को पढाओ अच्छे से ......अब आप ही बताइये मै क्या करून .......मै सोचने लगी इतनी छोटी सी बच्ची और माँ के लिए इतना प्यार ...मन ख़ुशी से भर उठा ..लगा कि उससे कहूं ..शाब्बाश बेटा ...यूँ ही अपनी माँ का ख़याल रखना पर कह नहीं पायी क्योंकि बात सिर्फ इतनी सी ही तो नहीं थी ...बेशक ये ज़ज्बा जरूरी था पर पढाई तो उससे ज्यादा जरूरी थी न ...इधर गंगा का रुदन चालू था ...आप ही बताइए मैडम ...पप्पू तो लड़का है ..अगर नहीं भी पढ़ेगा अच्छे से तब भी कुछ न कुछ तो कर ही लेगा ...लड़कों के करने के बहुत से काम होते हैं पर अगर ये नहीं पढेगी तो इसका क्या होगा ...कल अगर मेरी तरह इसके भी आदमी ने इसको छोड़ दिया तब .?....तब क्या ये भी मेरी तरह बर्तन कपडे करके ही जिन्दगी पार करेगी ...इतना कहकर वो सिसकने लगी ....मैंने कहा ....अच्छा चलो छोडो ...बच्ची है अभी ,.. समझ जायेगी ..तुम परेशान मत हो ....चलो चाय बनाओ ..मुझे भी दो और तुम भी पी लो पहले फिर काम करो ...वो सिसकते हुए धीरे से उठकर चली गयी चाय बनाने ....और मै उस बच्ची सोनू के बारे में सोचने लगी ...छोटी सी उम्र में ही कितनी संवेदनशील और समझदार हो गयी है ...अभी से माँ का हाथ बंटा लेना चाहती है ...उसकी चिंताएं बाँट लेना चाहती है पर नहीं जानती कि माँ की चिंताएं ज्यादा व्यवहारिक हैं ....उसकी सोच पर ख़ुशी भी हो रही थी और उम्र व् हालात पर अफ़सोस भी ....न जाने कितनी ऐसी सोनू ....और गंगाएं हैं हमारे देश में जो एक दुसरे कि जिंदगियों को बेहतर बनाने के लिए अपना आज होम कर देना चाहती हैं पर फिर भी पूरी कोशिश के बावजूद भी मुकद्दर नहीं बदल पातीं ...और ठंडी सांस के साथ मैंने इस विचार को वहीँ छोड़ दिया .
बीच के कुछ सालों में वो पढ़ती रही ..काम भी करती रही ..दरअसल काम ज्यादा करती रही ..पढ़ाई में मन नहीं लगता था शायद उसका तो टालमटोल करके किसी तरह १०वी तक पहुंची ...मैंने उसे बहुत समझाया कि कम से कम १०वी पास करके कोई डिप्लोमा ही कर लो तो ढंग की नौकरी मिल जायेगी ....वो हर बार बड़ी तन्मयता से सुनती और हामी भरती पर जैसी जिसकी तकदीर ...वो १०वी पास नहीं कर पायी और इसी बीच किसी लड़के के चक्कर में आ गयी ...इसका पता तो खैर उसकी मा को भी तब चला जब वो घर से भाग गयी बिना बताये ...बुरा हो इस मोबाइल सुविधा का कि न जाने अन्दर अन्दर दोनों में क्या खिचड़ी पकी और दोनों बिना बताये घर से भाग गए ....गंगा रोते रोते आई और बताने लगी सब ...ये भी बताया कि लड़का शायद पहचान वालों का ही है ...शादी में मिला था ...उसे शक भी हुआ था पर जब तक वो पूरी खोज खबर लेती तब तक ये काण्ड हो गया ...वो बुरी तरह बिलख रही थी ...मैंने उसे कहा कि सबसे पहले पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट दर्ज कराओ ...बदनामी के डर से वो झिझक रही थी पर मेरे समझाने और कोई दूसरा चारा न होने कि स्थिति में वो अपने बेटे के साथ पुलिस स्टेशन गयी और रिपोर्ट दर्ज कराई ...उसके बाद तकरीबन एक हफ्ते के अंदर ही सोनू मिल गयी ...मतभेदों के बावजूद गंगा ने दोनों की शादी करा दी ....लड़के के मा बाप शायद कुछ न मिलने की वजह से असंतुष्ट और नाराज़ हुए इसलिए न तो शादी में आये और न ही बेटे बहू को अपनाया ...आज वो फिर से अपनी मा के साथ है ..इस बार अपने बेरोजगार पति और उसके बोझ के साथ ...गंगा अब अपने दामाद को कोई ऐसा कोर्स करा देना चाहती है जिससे वो अपने पैरों पर खडा होकर अपनी बीवी और बच्चों की जिम्मेदारियों को उठा सके ....बेरोजगारी की झुंझलाहट में उसके पति की तरह उसकी बेटी को छोडकर भाग न जाय ...
कुछ प्रश्न मनोवैज्ञानिक थे जो कुरेद रहे थे कि क्या सोनू ने जल्दबाजी इसलिए दिखाई थी कि वो अपने हालातों से उब और थक चुकी थी और कैसे भी करके इससे बाहर निकलना चाहती थी या फिर वो इस तरह कुछ ज्यादा ही संवेदनशीलता से अपनी माँ की जिम्मेदारी कम करना चाहती थी या फिर कुछ ऐसा था कि इस उम्र कि ( 17-१८ ) गंध ने उसे सम्मोहित कर लिया था .... पर एक यक्ष प्रश्न अपनी पूरी विभत्सता व् क्रूरता के साथ गंगा की आँखों में भी था कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा मैडम जी ??
घर की साफ़-सफाई के लिए जब नौकरानी आई तो उसके साथ एक छोटी सी लगभग ८-१० साल की बच्ची भी जो देखने में ६-७ से ज्यादा की नहीं लग रही थी ...आई थी ...सांवली सी पर खूब अच्छे से धोये गए कपड़ों को पहने ...तेल लगाकर करीने से बांधे गए बालों के साथ वो शर्मीली बच्ची अपने कपडे में ही अपनी उंगलियाँ छिपाते अपनी माँ के पीछे खडी हो गयी थी जिसे देखकर ये पूछा मैंने .
मैडम जी , ये मेरी बेटी है ...अब मेरे साथ ही रहेगी ...इतना कहकर आमतौर पर कम ही बोलने वाली गंगा ने उसे वहीँ चुपचाप बैठने का इशारा किया ..वो ख़ामोशी से बैठ गयी पर उसकी नज़रें पूरे घर में घूम रही थीं ..जब उसने मुझे खुद को देखते पाया तो अनायास ही नज़रें झुका लीं .....मैंने पूछा .....बिस्किट खाओगी ? ....वो मेरी तरफ देखने लगी पर बोली कुछ नहीं ..उसकी नज़रें अब अपनी माँ को ढूंढ रही थीं ( शायद सहमती के लिए )
मैंने उसे कटोरी में 4-5 बिस्किट लाकर दिए उसने चुपचाप हाथ बढाकर ले लिया ...सामने रखकर बैठ गयी ...मैंने कहा ...खा लो ...वो एक बिस्किट उठाकर खाने लगी ..खाने क्या लगी बस कुतरने लगी ...फिर मै भी अपने काम में लग गयी और वो वहीँ बैठी रही ..फिर उसकी माँ काम ख़त्म करके जाने लगी तो उसके साथ हो ली ... इसके बाद वो अक्सर मेरे यहाँ आती ...घर के छोटे-मोटे काम कर देती ..फिर आराम से बैठकर खाती और टीवी के सामने पालथी मारकर बैठ जाती ...उसे गाने बहुत पसंद थे ...सुनती और खुश होती .....बचपन का चुलबुलापन पूरी तरह मौजूद था उसमे पर कभी कभी मजबूरी की परतों से ढंका हुआ .
वो आमतौर पर खुशमिजाज़ थी ...हंसती रहती थी पर कहीं गहरे उसे ये अहसास था कि वो गरीब है ...उसकी माँ दिन भर काम करती है तभी पेट भर खाने का इंतजाम हो सकता है और एक छोटा भाई भी तो है जिसकी देखभाल करनी है ...इस अहसास से शायद वो कुछ जल्दी ही बड़ी होने लगी ...समझदार होने लगी ...मैंने गंगा से कहकर उसका और उसके भाई का दाखिला स्कूल में करवा दिया पर उसे शायद पढने से ज्यादा जरूरी काम करना लगा हो कि वो अक्सर कोई न कोई काम करके कुछ पैसे कमाने कि जुगत में रहने लगी ....स्कूल से गैरहाजिरी की शिकायतों पर उसने कभी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर जब गंगा को पता चला तो वो बहुत नाराज़ हुयी ...उसकी पिटाई भी कि फिर जब अगले दिन उसे और उसके भाई को स्कूल भेज कर काम पर आई तो गंगा की आँखों में आंसूं थे ...मैंने पूछा , क्या हुआ ? बोली मैडम जी , क्या बताऊँ ....पेट काटकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं ....सोचा थोडा पढलिख लेंगे तो कुछ अच्छा काम मिल जाएगा ....मेरी तरह झाड़ू-बर्तन नहीं करना पड़ेगा पर इस लड़की को तो समझ ही नहीं आता ...मेरे पीछे से किसी न किसी काम पर चली जाती है ...स्कूल नहीं जाती ,,,शिकायत आती है जब तो मुझे पता चलता है ...कल तो खूब मारे हैं उसको और भेजे हैं स्कूल ..इतना कहकर रो दी ...बच्ची को पीटने का दुःख उसको बच्ची से कहीं ज्यादा हो रहा था पर फिर भी वो कुछ भी करके उसे पढ़ाना चाहती थी जिससे उसे तो कम से कम ये जिल्लत भरी जिन्दगी न जीनी पड़े ...कोई भी ढंग का काम करके इज्ज़त से जी सके ....मैंने कहा ...तुमने मारा क्यों ...समझा देतीं ...तो वो फट पडी ...मैडम जी समझाया तो कितनी ही बार था पर वो समझे तब न ...वो कहती है कि अम्मा ... हम भी काम करेंगे तो तुम्हारा बोझ कुछ तो हल्का हो जाएगा न ....हम पढ़ भी लेंगे और काम भी कर लेंगे ..तुम पप्पू को पढाओ अच्छे से ......अब आप ही बताइये मै क्या करून .......मै सोचने लगी इतनी छोटी सी बच्ची और माँ के लिए इतना प्यार ...मन ख़ुशी से भर उठा ..लगा कि उससे कहूं ..शाब्बाश बेटा ...यूँ ही अपनी माँ का ख़याल रखना पर कह नहीं पायी क्योंकि बात सिर्फ इतनी सी ही तो नहीं थी ...बेशक ये ज़ज्बा जरूरी था पर पढाई तो उससे ज्यादा जरूरी थी न ...इधर गंगा का रुदन चालू था ...आप ही बताइए मैडम ...पप्पू तो लड़का है ..अगर नहीं भी पढ़ेगा अच्छे से तब भी कुछ न कुछ तो कर ही लेगा ...लड़कों के करने के बहुत से काम होते हैं पर अगर ये नहीं पढेगी तो इसका क्या होगा ...कल अगर मेरी तरह इसके भी आदमी ने इसको छोड़ दिया तब .?....तब क्या ये भी मेरी तरह बर्तन कपडे करके ही जिन्दगी पार करेगी ...इतना कहकर वो सिसकने लगी ....मैंने कहा ....अच्छा चलो छोडो ...बच्ची है अभी ,.. समझ जायेगी ..तुम परेशान मत हो ....चलो चाय बनाओ ..मुझे भी दो और तुम भी पी लो पहले फिर काम करो ...वो सिसकते हुए धीरे से उठकर चली गयी चाय बनाने ....और मै उस बच्ची सोनू के बारे में सोचने लगी ...छोटी सी उम्र में ही कितनी संवेदनशील और समझदार हो गयी है ...अभी से माँ का हाथ बंटा लेना चाहती है ...उसकी चिंताएं बाँट लेना चाहती है पर नहीं जानती कि माँ की चिंताएं ज्यादा व्यवहारिक हैं ....उसकी सोच पर ख़ुशी भी हो रही थी और उम्र व् हालात पर अफ़सोस भी ....न जाने कितनी ऐसी सोनू ....और गंगाएं हैं हमारे देश में जो एक दुसरे कि जिंदगियों को बेहतर बनाने के लिए अपना आज होम कर देना चाहती हैं पर फिर भी पूरी कोशिश के बावजूद भी मुकद्दर नहीं बदल पातीं ...और ठंडी सांस के साथ मैंने इस विचार को वहीँ छोड़ दिया .
बीच के कुछ सालों में वो पढ़ती रही ..काम भी करती रही ..दरअसल काम ज्यादा करती रही ..पढ़ाई में मन नहीं लगता था शायद उसका तो टालमटोल करके किसी तरह १०वी तक पहुंची ...मैंने उसे बहुत समझाया कि कम से कम १०वी पास करके कोई डिप्लोमा ही कर लो तो ढंग की नौकरी मिल जायेगी ....वो हर बार बड़ी तन्मयता से सुनती और हामी भरती पर जैसी जिसकी तकदीर ...वो १०वी पास नहीं कर पायी और इसी बीच किसी लड़के के चक्कर में आ गयी ...इसका पता तो खैर उसकी मा को भी तब चला जब वो घर से भाग गयी बिना बताये ...बुरा हो इस मोबाइल सुविधा का कि न जाने अन्दर अन्दर दोनों में क्या खिचड़ी पकी और दोनों बिना बताये घर से भाग गए ....गंगा रोते रोते आई और बताने लगी सब ...ये भी बताया कि लड़का शायद पहचान वालों का ही है ...शादी में मिला था ...उसे शक भी हुआ था पर जब तक वो पूरी खोज खबर लेती तब तक ये काण्ड हो गया ...वो बुरी तरह बिलख रही थी ...मैंने उसे कहा कि सबसे पहले पुलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट दर्ज कराओ ...बदनामी के डर से वो झिझक रही थी पर मेरे समझाने और कोई दूसरा चारा न होने कि स्थिति में वो अपने बेटे के साथ पुलिस स्टेशन गयी और रिपोर्ट दर्ज कराई ...उसके बाद तकरीबन एक हफ्ते के अंदर ही सोनू मिल गयी ...मतभेदों के बावजूद गंगा ने दोनों की शादी करा दी ....लड़के के मा बाप शायद कुछ न मिलने की वजह से असंतुष्ट और नाराज़ हुए इसलिए न तो शादी में आये और न ही बेटे बहू को अपनाया ...आज वो फिर से अपनी मा के साथ है ..इस बार अपने बेरोजगार पति और उसके बोझ के साथ ...गंगा अब अपने दामाद को कोई ऐसा कोर्स करा देना चाहती है जिससे वो अपने पैरों पर खडा होकर अपनी बीवी और बच्चों की जिम्मेदारियों को उठा सके ....बेरोजगारी की झुंझलाहट में उसके पति की तरह उसकी बेटी को छोडकर भाग न जाय ...
कुछ प्रश्न मनोवैज्ञानिक थे जो कुरेद रहे थे कि क्या सोनू ने जल्दबाजी इसलिए दिखाई थी कि वो अपने हालातों से उब और थक चुकी थी और कैसे भी करके इससे बाहर निकलना चाहती थी या फिर वो इस तरह कुछ ज्यादा ही संवेदनशीलता से अपनी माँ की जिम्मेदारी कम करना चाहती थी या फिर कुछ ऐसा था कि इस उम्र कि ( 17-१८ ) गंध ने उसे सम्मोहित कर लिया था .... पर एक यक्ष प्रश्न अपनी पूरी विभत्सता व् क्रूरता के साथ गंगा की आँखों में भी था कि आखिर ऐसा कब तक चलेगा मैडम जी ??
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