Monday, 17 November 2014

अंतर्मन

हर किसी के पास है एक साक्षी
उदासी के सुरंग में छोर पर दिखती रौशनी सा
या पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर किसी सिद्ध मंदिर सा
जो उम्मीदें जगाता है
हौसला बढाता है और जिद्द भी पैदा करता है लक्ष्य पूर्ति के लिए ,

हर उस पल वो गवाह बनता है जब हिम्मत टूट रही होती है
जब ताकत गीली मिटटी सी हो रही होती है
वो ख़ामोशी से उसे उम्मीद के सांचे में उतार लेता है
गढ़ देता है हथेलियों के नर्म स्पर्श से
धीरे-धीरे मजबूत करता है फिर चुनौतियों की तपिश में ,

वो आइना बनता है अनगिनत गलतियों का फिर सुधार भी
उसकी हर भाषा रच देती है एक नया आयाम
सोपानो की श्रृंखला में हर कदम की सही परख है वो
तो उचित उत्तर भी ढेरों उलझनपूर्ण प्रश्नों का
जीवन के हर पन्ने पर इत्र सा महमहाता है
स्याहियों को इन्द्रधनुष के सुखद रंगों सा कर जाता है ,

हमारा अंतर्मन हमारा सच्चा दोस्त बन जाता है !!

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