Saturday, 15 November 2014

प्रेम में उदासी

प्रेम में उदासी लिखना सहज है,

मन के धागे खोले जा सकते हैं यहाँ
लिखी जा सकती हैं वो तकलीफें जो दरअसल तकलीफें नहीं होतीं
बस अप्राप्य सा कुछ होती हैं कामनाओं की बैसाखी पर ,
वो ढेरों चाहतें -आकांक्षाएं जो व्यक्ति कह नहीं पाता खासकर स्त्री
वो कहा जाता है इन तमाम कविताओं में
कई मायूस हुयी सतहों के साथ ,

फंतासी का ज़िक्र आवश्यक है
कि कभी भी प्रेम संपूर्णतः नहीं मिलता
मिल भी नहीं सकता कि सम्पूर्णता उब पैदा करती है
जबकि कुछ रह जाना ढेरों लालसा
यही लालसाएं प्रेम को जीवित रखती हैं ताज़ा रखती हैं ,

अतृप्त होना आवश्यक है प्रेम करने के लिए
इसलिए भी कि उसे महसूस कर सकें
हर बार परिपक्वता के उच्च से उच्चतर होते सोपानो के साथ
उन चाहतों के साथ भी जो हर दिन के साथ अपनी आकृति बदल लेते हैं
बदल लेते हैं संतुष्टि का पैमाना भी और नजरिया भी ,

प्रेम में ख़ुशी नहीं लिखी जा सकती
प्रेम में उदासियाँ लिखी जाती हैं ,
इन्हें लिखा जाना सहज है सरल है आवश्यक भी
प्रेम जीवित रखने के लिए !!

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