सांझ ढलते ही ईश्वर जन्म लेता है
स्वयं में -- सब में
स्वाभाविकतः सहज- सुन्दर
हर आस्था-अनास्था के भेद से परे ,
स्वयं में -- सब में
स्वाभाविकतः सहज- सुन्दर
हर आस्था-अनास्था के भेद से परे ,
हम इसे खामखयाली कह सकते हैं
पर नकार नहीं सकते
बहस कर सकते हैं पर ख़त्म नहीं
प्रश्न विश्वास का हो सकता है
अविश्वास का भी
स्वीकार्य व् अस्वीकार्य का भी
परन्तु जिज्ञासाएं
मौलिक रूप में फिर भी सकारात्मक ही रहती हैं,
पर नकार नहीं सकते
बहस कर सकते हैं पर ख़त्म नहीं
प्रश्न विश्वास का हो सकता है
अविश्वास का भी
स्वीकार्य व् अस्वीकार्य का भी
परन्तु जिज्ञासाएं
मौलिक रूप में फिर भी सकारात्मक ही रहती हैं,
नियत समय पर तुलसी का दिया दिव्य होता है
उतना ही मनोहारी सुबह का मंत्रोच्चार
या अजान की आवाज़
या मोमबत्तियों का जलाया जाना
या फिर मत्था टेकना भी ,
उतना ही मनोहारी सुबह का मंत्रोच्चार
या अजान की आवाज़
या मोमबत्तियों का जलाया जाना
या फिर मत्था टेकना भी ,
कि भले ही संस्कारगत हो पर होता अवश्य है
ईश्वर को याद किया जाना
हर अच्छे-बुरे वक्तों में
कि एक वैज्ञानिक ने कभी कहा था बड़ी दृढ़ता से
मै आस्तिक नहीं हूँ ये ईश्वर की शपथ खाकर कहता हूँ !!
ईश्वर को याद किया जाना
हर अच्छे-बुरे वक्तों में
कि एक वैज्ञानिक ने कभी कहा था बड़ी दृढ़ता से
मै आस्तिक नहीं हूँ ये ईश्वर की शपथ खाकर कहता हूँ !!
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