Thursday, 8 January 2015

मुक्ति

मृत्यु चमकीला सितारा 
बांह खोले है खड़ा 
उस पार आनन् पर क्षितिज के ,

रो पड़ी धरती समझकर मिलन अंतिम 
हंस पडी प्रकृति सहज कर कष्ट अंतिम ,

चल पड़े हैं कदम जैसे गति पवन हो 
खींचता गह्वर में पर कि मन विकल हो ,

मै मगर अब मुक्त हूँ जीवन के सुन्दर स्वप्न से 
आत्मा संयुक्त है अब मृत्यु प्रेम  के जन्म से ,

हो रहा सब कुछ समाहित बादलों की गोद तक 
हो रहा अप्रतिम सुख अब आंसुओं के छोर तक ,

कि मृत्यु चमकीला सितारा 
बांह खोले है खड़ा 
उस पार आनन् पर क्षितिज के 
अंक कर लेने को व्याकुल !!

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