मृत्यु चमकीला सितारा
बांह खोले है खड़ा
उस पार आनन् पर क्षितिज के ,
रो पड़ी धरती समझकर मिलन अंतिम
हंस पडी प्रकृति सहज कर कष्ट अंतिम ,
चल पड़े हैं कदम जैसे गति पवन हो
खींचता गह्वर में पर कि मन विकल हो ,
मै मगर अब मुक्त हूँ जीवन के सुन्दर स्वप्न से
आत्मा संयुक्त है अब मृत्यु प्रेम के जन्म से ,
हो रहा सब कुछ समाहित बादलों की गोद तक
हो रहा अप्रतिम सुख अब आंसुओं के छोर तक ,
कि मृत्यु चमकीला सितारा
बांह खोले है खड़ा
उस पार आनन् पर क्षितिज के
अंक कर लेने को व्याकुल !!
No comments:
Post a Comment