Friday, 30 January 2015

शुक्रिया ईश्वर

यही वक्त है यही लम्हा
कि जब टूटा था कुछ बहुत ख़ामोशी से
पूरे शोर के साथ
दहल उठा था तब वक्त मासूम चुप्पी से
कि दर्द ज्यादा एकत्रित था यहाँ घनघोर क्रंदन से भी
सहज नहीं था सहेजा जाना साँसों को
कि सहज नहीं था साँसों में उजास भर पाना
ज़ख्म भी तब सहम सहम कर रिसते
कि तब आंसूं भी मानो हौसलों की चट्टान थामे खडा था
कोर्निया के पीछे हीरे सा
लम्बी सिंदूरी रेखा मांग भर दमकती यकीन सी
तो खुले बालों में जब तब बिखराव का कम्पन होता
खुद ही संभल भी जाता फिर
हर रोज़ इबादत नंगे पैरों से नापी जाती
झलक जाती जो पत्तों के दोनों में सुनहरी जिद्द जैसी
कि दर्ज होती हर रोज़ बस एक ही दुआ ईश्वर के ख्वाबगाह में
जो झिंझोड़कर जगाती उन्हें वक्त बेवक्त और विवश कर देती आशीर्वाद के लिए
ईश्वर कभी झल्लाता ,पैर पटकता, क्रोधित होता पर अंततः सिर झुका देता
कि हिम्मत नहीं थी उसमे भी दुआओं को नकारने की
उन्हें खारिज करने की ,

फिर एक रोज़ लौट आई दियों में रौशनी जगमगाती
कि लौट आया मीठा पानी
कि लौट आया उम्मीदों का चप्पू
कि लौट आयी मुस्कान की हरारत भी ,

आज जिन्दा है एक बार फिर हर हंसी हर सुख हर सुकून
ईश्वर को दी गयी चुनौती के अंजाम पर उसमे आस्था सहित
शुक्रिया ईश्वर !!

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