Saturday, 18 May 2013

माँ

माँ बनना और माँ बने रहना दो अलग बातें हैं
सम्मान का बहुत शोर होता है इस शब्द के लिए
बेशक भाव के लिए भी ,

क्या ये जायज़ है ?

पूछिए किसी नाजायज़ (तथाकथित) बच्चे से
क्या उसकी भी माँ उतनी ही महान है जितनी मेरी या आपकी --
वो बच्चा भी क्या ऐसे ही पूजता होगा माँ को जिसे छोड़ दिया गया किसी डस्टबिन में
या किसी पार्क में या फिर असंख्य मंदिरों की सीढ़ियों पर
कभी भिखारियों ----कभी कुत्तों और कभी अनाथालयों की दया पर ,

माँ हमेशा ही महान नहीं होती
क्योंकि वो सर्वसुलभ नहीं होती
उसके लिए भी कुछ कायदे ,दायरे और बेड़ियाँ पूर्वनिश्चित हैं
पहले उनका आंकलन और समीक्षा हो फिर गुणगान किया जाए ,

मजबूरी की शक्ल में माँ को मुक्त नहीं किया जाना चाहिए
( हाँ औरत ही बने रहने पर ये बात अलहदा है )

फिर भी आज एक सलाम उन बच्चों के नाम
जो बिना माँ के ही महान बन पाए
और कुछ संवेदना उन माओं के लिए
जो इन बच्चों के महान होने पर माँ कहला पायीं
पर सबसे बड़ा सम्मान उन माओं के लिए
जो बिना गर्भ के ही उम्र भर अपने अंश को सहेजती ,संभालती रहीं
माँ कहलाती रहीं ----पूरे सम्मान और पूरे हक़ के साथ !!


अर्चना राज़

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