औरतें झूठ बोलती हैं ,
दरअसल हमारी पीढी की औरतें झूठ बोलती हैं
जब वे कहती हैं कि वे खुश हैं ,
छिपाना चाहती हैं वे
खुद के कमतर आंके जाने को
हर रोज़ आहत किये जाते मन को
अनायास ही भर आयी उन आँखों को
जिन्हें वे चुपके से नज़र बचाकर पोछ लिया करती हैं
किसी के देखने से पहले ,
बिना कहे ही समझ जाती हैं वे समाज की कुत्सित रवायतों को
परिवार की चेष्टाओं में छिपे अनगिनत निषेधों को ,
औरतें क्यों झूठ बोलती हैं
पीड़ा सहती हैं
क्यों अपमान के बावजूद भी मुस्कुराती हैं
क्यों खुद को पुरुषों से हीन मानकर संतुष्ट रहती हैं
जबकि पुरुषों के अस्तित्व का सच भी इनके उन्ही अंगों से जन्मता है
जहां पुरुष सबसे ज्यादा प्रहार करता है !!
दरअसल हमारी पीढी की औरतें झूठ बोलती हैं
जब वे कहती हैं कि वे खुश हैं ,
छिपाना चाहती हैं वे
खुद के कमतर आंके जाने को
हर रोज़ आहत किये जाते मन को
अनायास ही भर आयी उन आँखों को
जिन्हें वे चुपके से नज़र बचाकर पोछ लिया करती हैं
किसी के देखने से पहले ,
बिना कहे ही समझ जाती हैं वे समाज की कुत्सित रवायतों को
परिवार की चेष्टाओं में छिपे अनगिनत निषेधों को ,
औरतें क्यों झूठ बोलती हैं
पीड़ा सहती हैं
क्यों अपमान के बावजूद भी मुस्कुराती हैं
क्यों खुद को पुरुषों से हीन मानकर संतुष्ट रहती हैं
जबकि पुरुषों के अस्तित्व का सच भी इनके उन्ही अंगों से जन्मता है
जहां पुरुष सबसे ज्यादा प्रहार करता है !!
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