Monday, 3 March 2014

असमंजस

धरती असमंजस में है
तपन की जगह ये नमी कैसी
अभी तो अन्तस पूरा सूखा भी नहीं था
और बादल फिर से बरस उठे
कि ज़रा तो थामा होता खुद को
नियंत्रित किया होता
पूरी सूख जाने पर मै स्वयं करती तुम्हारा आह्वान
बाहें फैलाए
और भर लेती साँसों को तुम्हारे सोंधेपन से
अंतर्मन सराबोर हो जाता
पर तुम ठहर नहीं पाए
मै जी नहीं पायी सम्पूर्ण प्यास !!

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