धरती असमंजस में है
तपन की जगह ये नमी कैसी
अभी तो अन्तस पूरा सूखा भी नहीं था
और बादल फिर से बरस उठे
कि ज़रा तो थामा होता खुद को
नियंत्रित किया होता
पूरी सूख जाने पर मै स्वयं करती तुम्हारा आह्वान
बाहें फैलाए
और भर लेती साँसों को तुम्हारे सोंधेपन से
अंतर्मन सराबोर हो जाता
पर तुम ठहर नहीं पाए
मै जी नहीं पायी सम्पूर्ण प्यास !!
तपन की जगह ये नमी कैसी
अभी तो अन्तस पूरा सूखा भी नहीं था
और बादल फिर से बरस उठे
कि ज़रा तो थामा होता खुद को
नियंत्रित किया होता
पूरी सूख जाने पर मै स्वयं करती तुम्हारा आह्वान
बाहें फैलाए
और भर लेती साँसों को तुम्हारे सोंधेपन से
अंतर्मन सराबोर हो जाता
पर तुम ठहर नहीं पाए
मै जी नहीं पायी सम्पूर्ण प्यास !!
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