कुछ ख़ास लम्हों को मैंने कभी नहीं जिया
पिता के साथ को कभी नहीं जिया
कभी नहीं जी मैंने उनकी हंसी उनका उत्साहवर्धन
जैसा सब जिया करते हैं
बेटियों के लिए जैसे पिता हुआ करते हैं
मैंने जी है उनकी उदासीनता उनकी उपेक्षा
उनका होना कि वो मुझे नकार नहीं सकते
सिर्फ इसलिए ही वो मुझे स्वीकार भी नहीं करते ,
पर कुछ ख़ास लम्हों को मैंने जिया है
बड़ी शिद्दत से
जैसे कलियों का उदास होना
या मौसमो का रो पडना
पक्षियों की खामोशी या बसन्त का एकाकी होना
डूबती लालिमा का दर्द और फिर चाँद का बोझिल होना
खाली-सूनी आँखों से ---- बेआवाज़
एक लम्बे समय तक,
आज फिर महसूसती हूँ वही सब
और रो पड़ती हूँ
कि ख़ास लम्हे हुबहू वही हैं
पर आँखें बदल गयी हैं
आज ये पीड़ायें
मेरी जगह मेरे पिता की हो गयी हैं !!
पिता के साथ को कभी नहीं जिया
कभी नहीं जी मैंने उनकी हंसी उनका उत्साहवर्धन
जैसा सब जिया करते हैं
बेटियों के लिए जैसे पिता हुआ करते हैं
मैंने जी है उनकी उदासीनता उनकी उपेक्षा
उनका होना कि वो मुझे नकार नहीं सकते
सिर्फ इसलिए ही वो मुझे स्वीकार भी नहीं करते ,
पर कुछ ख़ास लम्हों को मैंने जिया है
बड़ी शिद्दत से
जैसे कलियों का उदास होना
या मौसमो का रो पडना
पक्षियों की खामोशी या बसन्त का एकाकी होना
डूबती लालिमा का दर्द और फिर चाँद का बोझिल होना
खाली-सूनी आँखों से ---- बेआवाज़
एक लम्बे समय तक,
आज फिर महसूसती हूँ वही सब
और रो पड़ती हूँ
कि ख़ास लम्हे हुबहू वही हैं
पर आँखें बदल गयी हैं
आज ये पीड़ायें
मेरी जगह मेरे पिता की हो गयी हैं !!
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