Sunday, 22 July 2012

धरोहर

सुलगती बारिश के साए तले
एक बार फिर मिले थे मै और तुम
पर वैसे ही ठहरे हुए और बेंइन्तहां धडकते हुए भी ,

निगाहों में  ही एक बार फिर ढेरों प्रश्न जगे थे
जिसके ज़वाब भी वैसे ही ख़ामोशी में  मिले
बंदिशों की पहरेदारी से अब तक बंधें हो जैसे ,

अब भी हमारे बीच अहसासों का एक पुल मौजूद है 
पर अब भी उसपर दहकते शोलों की इक लम्बी कतार है 
और अब तो उस पर न जाने कितने कैक्टस भी उग आये हैं ,

न जाने क्यों अब भी संस्कारों का एक पारदर्शी शीशा 
हमारे बीच ठहरा हुआ है 
और जिसे तोड़ने की अदम्य चाहतों के बावजूद भी 
हम कभी कोई  कोशिश तक नहीं कर पाए ,

पर फिर  भी बहुत कुछ है मेरे और तुम्हारे बीच हमें जोड़े रखने के लिए 
जैसे जाड़ों की कुछ गुनगुनाती धूप
या फिर बारिश की अंतहीन बेकाबू साँसें 
या फिर शायद वो एक अकेला स्पर्श 
जब मेरे दुपट्टे का किनारा तुम्हारी उँगलियों से होकर गुजरा था  
और जिसका बेहिसाब कम्पन अब तक मेरी धडकनों में वैसे ही मौजूद है  ,


और यही सब मेरे अब लगभग ख़त्म होते उम्र की धरोहर है
और मेरी वसीयत भी ...मेरे अगले जन्म के लिए !!







                           अर्चना राज
 



 

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