Tuesday, 24 July 2012

इंतज़ार

तुम मुझसे प्यार न करो बेशक
पर इनकार भी मत करो
तुम्हारा इंकार मेरे वजूद पर गर्म रेत सा बिखर जाता है
और चुभता रहता है हर वक्त अंतर्मन में सरहदी काँटों सा
और जंगल की भयावहता भी तब मेरे अन्दर अनायास ही पसरने लगती है
विशाल झरने की छोटी सी बिखरी हुई बूँद की तरह अस्तित्वहीन
मै जूझती रहती हूँ निरंतर अपने अकेलेपन में ,

तुम मुझसे प्यार न करो बेशक 
पर इंकार भी मत करो 
कि तुम्हारा इंकार मुझे रेगिस्तान कि सुलगती धूप सा बना देता है
उबाऊ , थका , अंतहीन और लगातार लगभग दावानल में परिवर्तित होता हुआ सा ;
या फिर अटलांटिक कि उस ठण्ड जैसा भी
जहां कभी कोई सांस जी नहीं पाती ,

तुम मुझसे प्यार न करो बेशक 
पर इंकार भी मत करो 
क्योंकि तुम्हारा इनकार मेरे अस्तित्व पर एक प्रश्नचिन्ह सा नज़र आता है ;
एक बेमकसद जिन्दगी के दिशाहीन  सफ़र जैसा भी
कि जिसका होना कहीं कोई स्पंदन नहीं जगाता 
और न होना भी किसी ख़ास महत्व का हकदार नहीं  
ये व्यर्थता  मेरे  होने को ही लगभग अमान्य कर देती है ,  

पर तुमने क्यों नहीं किया मुझसे प्यार 
तुम्हारी नज़रों ने तो अपने बेताब हौसलों से इसे खुद कबूला था 
और तुम्हारे अंतस के बेइन्तहां  कम्पन ने तुम्हारे लिए मेरा होना 
लगभग अवश्यम्भावी सा कर दिया था ,


फिर क्यों तुम्हारे चेहरे की नमी एक रोज खुश्क हो गयी 
और क्यों तुमने मेरे लिए पूरी दृढ़ता से 
उन हवाओं को भी प्रतिबंधित कर दिया
जो मुझ तक तुम्हारे स्पर्श का एकमात्र जरिया थे ,


वैसे मै आज भी तुम्हारी नज़र के उसी मुहाने पर खड़ी हूँ 
जहां आखिरी बार तुम्हारी नज़रों के सर्द अहसास ने मुझे 
बेसाख्ता ही एक जीवित शिला में परिवर्तित कर दिया था 
और यहाँ मै तुमसे होकर गुजरी हुई एक तप्त लहर के इंतज़ार में हूँ 
जो मेरे लिए तुम्हारी चाहतो से भीगी हुई होगी
 और जो मुझे फिर से मेरे होने का यकीन 
और मेरे अस्तित्व को सार्थकता दिलाएगी  !!






                      अर्चना राज !!

















1 comment:

  1. फिर क्यों तुम्हारे चेहरे की नमी एक रोज खुश्क हो गयी
    और क्यों तुमने मेरे लिए पूरी दृढ़ता से
    उन हवाओं को भी प्रतिबंधित कर दिया
    जो मुझ तक तुम्हारे स्पर्श का एकमात्र जरिया थे ,

    badi siddat hai in panktiyon me, jaisa lagta hai ki apni kahani aapki hubani padh rha hun......bahut umda badhai sweekar karen

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