Thursday, 29 December 2011

ख़ामोशी

ख़ामोशी


तुम्हारे और मेरे
प्रेम के बीच                                                      
पसरी ख़ामोशी की
स्पष्ट अभिव्यक्ति                                                                     
हमारी आँखों में उभरकर
अब इक प्रश्न सी                                                                          
नज़र आने लगी है ;

ख़ामोशी को शब्दों का
इक नया आयाम देने
और उसके अहसासों को
एक नया रूप देने की कोशिश में
हम दोनों ही
क्यों कुछ और खामोश
हो जाया करते हैं;

क्यों नहीं शब्दों से
अपना तारतम्य बनाये रखकर
अपनी ख्ह्वाहिशें
एक दुसरे से बाँट पाते हैं ;
उन्हें सतरंगी खुशियों में बदल पाते हैं;

क्यों ध्रुव तारे की सी चमक
हमारे कोरों पर ठहरे
अश्कों में नज़र आने लगी है;
चाहत के आसमान में
जो अपनी नियति
सदा ही अवश्यम्भावी
बनाये रखती है;

प्रेम में
येकैसी
अनिश्चितता है;
बिखर गयी है जो
हम दोनों के बीच
अनायास ही;
और खड़ी है
नागफनी के
अपने विराट  रूप में ;
चुनौती देते हुए हमें;
हमारे विशवास और समझ को ;
कि..भरोसा है अगर
तो बढ़ो आगे;
पार करो मुझको
और जीत लो
अपने उस प्रेम को
जो इस धरती पर
युगों युगों से
जीवित और स्थापित है
अपनी सम्पूर्ण गरिमा के साथ;

आओ और वो उत्तर
जो कैद है
हमारी ही खामोशियों के दायरे में ;
उन्हें अब हम ही मुक्त
और स्वीकार करें
सम्मान सहित
मेरे हम्न्फ्ज़ ....!!!


     अर्चना राज !!

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