सुलगते दर्द का सुर्ख अँधेरा
जला करता है
शब् भर मुझमे
कुछ इस कदर ;
कि बदल जाती हूँ मै
दरिया-ए- शबनम में
और बिखर जाती हूँ
सारी कायनात में
नाकाम तबस्सुम जैसी ....!!!
शबनम - ओस
कायनात -जहाँ
तबस्सुम - हंसी
अर्चना राज !!
जला करता है
शब् भर मुझमे
कुछ इस कदर ;
कि बदल जाती हूँ मै
दरिया-ए- शबनम में
और बिखर जाती हूँ
सारी कायनात में
नाकाम तबस्सुम जैसी ....!!!
शबनम - ओस
कायनात -जहाँ
तबस्सुम - हंसी
अर्चना राज !!
No comments:
Post a Comment