Tuesday, 8 January 2013

फैसला

तुम्हारी चाह मेरी सांस पर भारी पड़ी
सांसें त्याग दीं मैंने
बता दूँ फिर भी मै जिंदा रहूँगी
जियूँगी आग बनकर ,प्रश्न बनकर ,चेतना मे चोट बनकर ,

चुभूंगी मै तुम्हें भी उम्र भर नश्तर सरीखी
जलूँगी मै तुम्हारे पाप की हर इक परत मे
तुम्हारी राखियों पे स्याह बूंदें मै बनूँगी
किसी की झुर्रियों मे भी रहूँगी शर्म बनकर
ये पश्चाताप सा जीवन है अब खैरात तुमको ,

नहीं जिंदा हूँ मै देने गवाही उस कहर की
नहीं बख्शूंगी पर तुमको किसी भी मूल्य पर
ये जान लो तुम
करेंगी याद तुमको पीढ़ियाँ भी इस घृणा से
की मांगोगे फिर तुम भी मौत अपनी हर दुआ मे
घृणा वो भी (मौत ) करेगी ,

कयामत तुम थे पर अब फैसला ये मै करूंगी
भले जिंदा नहीं मै
हर सांस मे अब तुम मरोगे !!!


    अर्चना राज


6 comments:

  1. archana jee, behtareen likhti hain aap..aaj vatvrikssha se yahan pahuchaa..
    ab follow kar raha hoon, barabar pahuchunga...

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  2. धन्यवाद Mukesh Kumar Sinha जी

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  3. कयामत तुम थे पर अब फैसला ये मै करूंगी
    भले जिंदा नहीं मै
    हर सांस मे अब तुम मरोगे !!!

    बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति

    New post : दो शहीद

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  4. वह अपनी मौत की दुआ करे और मौत भी उससे नफ़रत करे ...यही सज़ा होनी चाहिये। मृत्युदण्ड की माँग तो अपराधी की मुक्ति है ...सरल है। सज़ा कड़ी से कड़ी हो। बहरहाल, वट्वृक्ष की एक डाल पकड़कर बन्दर की तरह कुलाँच मारी और यहाँ आ गया। आपकी संवेदनशील और सशक्त अभिव्यक्ति को नमन!

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  5. धन्यवाद कालीपद जी

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  6. :)..... बेहद आभार कौशलेन्द्र जी ....स्नेह बनाए रखें ।

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