Tuesday, 12 February 2013

अवसाद

होने को तो यूं भी था कि,

तुम होते और मै होती
बीच मे यादों कि अंगनाई
शब्द थमे से
अश्क बहे से
भावों का लहराता सागर ,

कतरा - कतरा प्रेम लरजता
सहमी-सहमी सांसें जगतीं
मंद पवन सी
नील गगन सी
फिर होता आलिंगन दृढ़ ,

धड़कन कि हर लय हो गुंजित
राग सुनाती मधुर मिलन का
करती झंकृत
बजती पायल
तुम शिव होते मै प्रकृति सी ,

होने को तो यूं भी था पर .......!!!



 अर्चना राज 

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