Monday, 4 February 2013

स्वाभिमान

बेचारगी मातम मे न बदलने पाये
जूझने की कोशिशें कुकुरमुत्ते सी हैं
यहाँ हर रोज बारिश होती है , हताश---- निराश ,

प्रश्नो को चाय की प्यालियों मे मत थिरकने दो
मालिकों की बपौती नहीं है ये
उत्तर हाथ के छालों से लिखो
या फिर दिमाग की नसों से ---- विस्फोट की हद तक ,

इंतज़ार हद मे हो तो सुखद है
उम्र भर का मोहताज मत बनाओ
नासूर टीसता है ---- बस टीसता ही है
होता-हवाता कुछ नहीं ,

काहिली का जामा जर्जर हो चुका है ---- उतार फेंको
विश्वास जड़ों से नसों मे बिखर जाएगा
सुबह जरूर आएगी यकीन की मुस्कान लेकर ,

प्राणियों की सर्वश्रेष्ठ शृंखला होने पर खुद को सम्मान दो !!




               अर्चना राज 

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