कैद हैं स्याह रातों के कई किस्से
बंद दरवाजों के पीछे बड़ी शाइस्तगी से
सूरज यहाँ अज्ञात है ;
दीवारें मसली साड़ियों की चोट से घायल हैं
पर कराहती नहीं
तो ज़मीन पर भी छालों के न जाने कितने धब्बे नक्श हैं ,
माजूरियत थक गयी है अब
रंगे दांतों के तमाम किस्से अब गर्त से उधड़ने लगे हैं
मोगरे की खुशबू तले सिसकियाँ उबल रही हैं
सुनाई पड़ती है अब पलंग के पायों के थरथराने की आवाज़
न जाने कब गिर पड़े
की सिहरन हर रात की जिंदा है अब तक
आक्रोश भी ---------
पर कर्तव्य ढहने की इजाजत नहीं देते ,
विद्रोह के थपेड़े अब ज़ोरों पर हैं
कमरा चक्रवात सा
कि रौंदे जाने कि चिंगारी भी बस फट पड़ने को आतुर है
एक नए आगाज के लिए
लावे का बिखरना तो लाजिमी है ,
उम्मीद एक प्रस्फुटन सी दहलीज़ पर है
कि सीपियाँ खुलने लगी हैं ,
ज़िंदगी मुस्कान संग बाहें पसारे खड़ी है !!!
अर्चना राज
बंद दरवाजों के पीछे बड़ी शाइस्तगी से
सूरज यहाँ अज्ञात है ;
दीवारें मसली साड़ियों की चोट से घायल हैं
पर कराहती नहीं
तो ज़मीन पर भी छालों के न जाने कितने धब्बे नक्श हैं ,
माजूरियत थक गयी है अब
रंगे दांतों के तमाम किस्से अब गर्त से उधड़ने लगे हैं
मोगरे की खुशबू तले सिसकियाँ उबल रही हैं
सुनाई पड़ती है अब पलंग के पायों के थरथराने की आवाज़
न जाने कब गिर पड़े
की सिहरन हर रात की जिंदा है अब तक
आक्रोश भी ---------
पर कर्तव्य ढहने की इजाजत नहीं देते ,
विद्रोह के थपेड़े अब ज़ोरों पर हैं
कमरा चक्रवात सा
कि रौंदे जाने कि चिंगारी भी बस फट पड़ने को आतुर है
एक नए आगाज के लिए
लावे का बिखरना तो लाजिमी है ,
उम्मीद एक प्रस्फुटन सी दहलीज़ पर है
कि सीपियाँ खुलने लगी हैं ,
ज़िंदगी मुस्कान संग बाहें पसारे खड़ी है !!!
अर्चना राज
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