Thursday, 18 July 2013

इंतज़ार

हर रात
मुट्ठी भर दर्द ओस की पोटली में बंद कर
सौंप देती हूँ आसमान को -----सालों से ,

अब उसने
बादलों का पूरा एक हिस्सा मेरे नाम कर दिया है
शायद उसकी सरहद में और जगह नहीं थी
ताकत भी नहीं
इतने सुर्ख और ज्वलंत अहसासों को एक साथ पनाह देने की ,

बारिश फिर भी नहीं होती -----मेरे लिए
बर्फीली हवाएं पूरी शिद्दत से जकड़े हुए हैं उसको
पिघलना यहाँ लगभग असंभव हो गया है ,

सूरज या तो नहीं उगता
या फिर अपने चरम पर होता है
दोनों ही स्थितियां बादलों को रास नहीं आतीं ,

पथरीली पगडंडियों पर
दो कदमो के निशान क्रमशः बड़े होते जा रहे हैं
दर्द वक्त से आगे निकलने की जद्दोजहद में
कदमो में पैठ रहा है
हर लम्हा ------अपनी समस्त निराशा और कुंठा के साथ ,

जूही मुस्कुराना चाहती है
नमी की दरकार है उसे -------पर मौसम माफिक नहीं
तपन बहुत है यहाँ ---हवाएं तक सुलग उठती हैं
मुरझाना तय है ,

पर आँखें
अब भी उम्मीद से लबालब--- बादलों को ताक रही हैं
शायद बारिश हो ही जाय
इस बार ------मेरे लिए भी !!!

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