Thursday, 18 July 2013

सामर्थ्य और दायरे





सूरज की पहली किरण ने  जब बर्फ की चादर को हौले से सहलाया तो उसके अपने पन की मुलायम तपिश से बर्फ बेसाख्ता पिघल उठी ..जब उसके अंदर की खूबसूरती बूँद - बूँद बिखरने लगी तो लगा जैसे सारी कायनात मुस्कुरा उठी हो ..पक्छी भी अलसाए से उठने लगे ..जनजीवन भी धीरे - धीरे सक्रीय होने लगा .

सूरज मुग्ध आँखों से अपनी प्रियतमा को निहार रहा था ...उसी वक्त एक बच्चा वहां आया ...उसने बर्फ का गोला बनाकर हवा में उछाल दिया ...फिर उसने एक बर्फ की मूरत बनाई ..खुश होकर देखता रहा ..

बर्फ ने मुस्कुराते हुए पूछा --क्या तुम्हे मेरे साथ खेलना अच्छा लगता है ?

बच्चे ने वैसी ही भोली सी मुस्कान के साथ जवाब दिया --मुझे बहुत अच्छा लगता है तुम्हारे साथ खेलना .

बर्फ ने फिर पूछा -- तुम्हारा कोई दोस्त नहीं है?

बच्चे के चेहरे पर से हलकी मायूसी झलकने लगी -- नहीं मेरा कोई दोस्त नहीं है ..सभी मुझसे बड़े हैं ..कोई भी मुझे अपने साथ                                                            खेलने नहीं देता .

बर्फ ने उसे समझाते हुए कहा ---  कोई बात नहीं..तुम रोज यहाँ आया करो और मेरे साथ खेला करो ..जब तक तुम्हारा मन करे.

बच्चा खुश हो गया ..बोला--सच  ?

बर्फ ने मुस्कुराकर जवाब दिया --- हाँ ...बिलकुल सच .

पर अचानक ही बच्चा फिर उदास हो गया ..बोला-- रोज तो नहीं आ सकता .

बर्फ ने पूछा --क्यों

बच्चा बोला --- माँ नहीं आने देंगी ..यहाँ दूर पड़ता है ..मै घर के पास ही खेलता हूँ ..वैसे भी यहाँ खेलूँ या वहां खेलूँ .खेलना तो मुझे                    अकेले ही है न ..तुम तो मेरे साथ खेल नहीं सकती ..है न ?

इस बार बर्फ चुप रही
कुछ नहीं बोली
बस चुपचाप बच्चे की मासूमियत में कही गयी बात को सोचती रही ..
बच्चे ने कुछ देर तक जवाब का इंतज़ार किया फिर धीरे-धीरे वो भी वहां से चला गया.
ऐसा लगा जैसे अचानक ही दोनों को अपनी अपनी सामर्थ्य और दायरे का ज्ञान हो आया हो .

सूरज अब भी मुस्कुरा रहा था ..पर अब उसमे कुछ गंभीरता भी थी ..क्योंकि ये बात तो उसके लिए भी उतनी हा सच थी...सच है प्राकृतिक तौर पर हमें चाहे जितना  भी सामर्थ्य मिला हो पर साथ ही हमारे कर्तव्य भी निश्चित हैं एक विशेष परिधि के भीतर ......!!


     
अर्चना राज !!






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