Tuesday, 22 July 2014

विद्रोह

सिगरेट शराब देह तुम्हारे लिए ही क्यों सुविधाजनक हो
ओ पुरुष ----मेरे लिए क्यों नहीं
कि अब जियूंगी मै भी स्त्री जीवन की तमाम वर्जनाओं को
खुलेआम ,
प्रकृति इच्छाओं में भेद नहीं करती
फिर समाज क्यों
कि यदि नैतिक हो तो सभी के लिए
अनैतिक भी तो सभी के लिए
बिना किसी भेद के ,
दुभाषिये के चश्मे से मापदंडों को अस्वीकार करती हूँ
तुम भी करो स्त्री
बढ़ो एक कदम और बंधन मुक्ति की राह में !!

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