Tuesday, 22 July 2014

प्रेम

मै चुप हूँ कि शोर ज्यादा है यहाँ ,

रौनकों का शहर है
संजीदगी नहीं पायी जाती ,

मेरी उदासियों में भी तासीर जिन्दा है मगर
उसी को ढूंढ लेती है
जो मुझ सा दिखता है यहाँ ,

कोई दिल्लगी कहता है
हिकारत से
तो कोई महसूसता है
सिहरकर
फिर कह उठता है
प्रेम इसे ,

प्रेम और उदासियाँ साथ-साथ पलती हैं
खिलखिलाहटों से बहुत परहेज़ है इसे अब भी !

1 comment:

  1. जवाब नहीं आपका, सुन्दर !

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