मै चुप हूँ कि शोर ज्यादा है यहाँ ,
रौनकों का शहर है
संजीदगी नहीं पायी जाती ,
मेरी उदासियों में भी तासीर जिन्दा है मगर
उसी को ढूंढ लेती है
जो मुझ सा दिखता है यहाँ ,
कोई दिल्लगी कहता है
हिकारत से
तो कोई महसूसता है
सिहरकर
फिर कह उठता है
प्रेम इसे ,
प्रेम और उदासियाँ साथ-साथ पलती हैं
खिलखिलाहटों से बहुत परहेज़ है इसे अब भी !
रौनकों का शहर है
संजीदगी नहीं पायी जाती ,
मेरी उदासियों में भी तासीर जिन्दा है मगर
उसी को ढूंढ लेती है
जो मुझ सा दिखता है यहाँ ,
कोई दिल्लगी कहता है
हिकारत से
तो कोई महसूसता है
सिहरकर
फिर कह उठता है
प्रेम इसे ,
प्रेम और उदासियाँ साथ-साथ पलती हैं
खिलखिलाहटों से बहुत परहेज़ है इसे अब भी !
जवाब नहीं आपका, सुन्दर !
ReplyDelete