Saturday, 1 October 2011

तुम्हे भी

तुम्हारी मौन सी आँखें
की जिनमे तैरते हैं शब्द ,
बस कुछ कह नहीं पाते
यूँ ही चुपचाप तकते हैं......

वो इक अहसास जगता है
तेरे शब्दों के मतलब का,
की जो तुम कह नहीं पाते
वो मेरा दिल समझता है......

तुम्हे पहचानती हूँ तबसे
जबसे ख्वाब देखा है ,
तुम्हे ही चाहती हूँ तबसे
जब चाहत को जाना है ......

मेरी  खिड़की से दिखता है
तेरी खिड़की का हर मंजर ,
की जब तू सोचता है कुछ
तो लगता है; वहां मै हूँ........

तुम्हारे प्यार का अहसास ही
जिन्दा   है   बस    मुझमे ,
कहो .... इक बार तो कह दो
तुम्हे भी प्यार है मुझसे ......!!!!!!


                  अर्चना राज !!!











2 comments:

  1. lajawaab....bas lajawaab :)

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  2. बेहतरीन , बहुत खूब हमेशा की तरह अर्चना जी !

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