Tuesday 4 October 2011

भूकंप

प्रकृति का जब फूटा गुस्सा ,आया तब भूकंप ,
आया जब भूकंप देश में ,मानवता उठी कराह...

बिलख  रहे हैं बूढ़े बच्चे ,चले गए हैं जिनके अपने ,
किससे बोलें किससे पूछें ,कहाँ गए अब उनके अपने...

सूखी आँखें पत्थर चेहरा , सीने में है गहन निराशा ,
आओ हम सब कोशिश करके , भर दें उनमे फिर से आशा ...

हम भी हैं इन्सान मात्र ,ये हम पर भी हो सकता है,
प्रकृति ने समझाया है की ,राज उसी का चलता है.....

उनका जो इंसानी हक़ है ,रोटी कपडा और मकान,
वही दिलाएं उनको मिलकर ,तभी होंगे सच्चे इंसान ...

चलो दोस्तों ..करें मदद अब ,उनकी जो हम जैसे हैं ,
तो ही हम इंसान रहेंगे ,प्राणियों में जो बेहतर हैं ......!!!!!!!!!!!


                                         रीना !!!!!!!!!!!!!!









No comments:

Post a Comment