Tuesday, 18 October 2011

मेरा मौन

तुम
मेरे मौन को
उसके शब्दों को
समझ सकते हो ;
या फिर बस यूँ ही
मुझे समझने की
बात कहते हो ,

बस कुछ कहने के लिए
यूँ ही कह देते हो ......

मेरे मौन की भाषा
मेरे उन शब्दों से बेहतर है ;
जो मै तुम्हें कभी कह नहीं सकती
जो मै तुम्हे कभी भी समझा नहीं सकती ....

अगर समझ सको तो समझ लो
वो , जो मैंने बस टूटकर  चाहा;
पर फिर भी न जाने क्यों
मेरा अन्तःस्थल
रेत सा ही रहा
बिखरा बिखरा सा......

कुछ नमी की उम्मीद
जो थी उन अहसासों से ;
कभी मिल ही नहीं पाई ......

पर अब
इतने वर्षों बाद अचानक
बादल घिर आये हैं ;
घनघोर बारिश का भी अंदेशा है......

पर डरती हूँ
की कहीं खो न दूं
अपने साँसों की डोर ;
कहीं मिट न जाऊं
उन तमाम सपनो के
सच की तरह
जो इन बीते वर्षों में
हर तन्हाई में देखे मैंने .....

तुम चुप क्यों हो ;
कहो न ; बार बार कहो
की तुम समझ सकते हो
मेरे मौन को ;
उसकी पीड़ा को .....

तुम्हारे शब्द
तुम्हारी आँखों की नमी
रुई के नर्म फाहे सी
मेरे जख्मो को ठंडक पहुंचाएगी;
और मै जी जाउंगी
एक बार फिर से
तुम्हारे लिए मेरे हमदम
सिर्फ तुम्हारे लिए.....!!!!!



                    रीना !!!!!


















































































2 comments:

  1. तुम .....केवल तुम .....सिर्फ तुम .......हाँ बस तुम

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