Wednesday, 12 October 2011

तुम्हारी ख़ामोशी

मै
तुम्हारी ख़ामोशी से
बातें करती हूँ
अक्सर......

तुम्हारी ख़ामोशी
ज्यादा मुखर है
तुम्हारे शब्दों से ....

तन्हाई का अहसास
अब बहुत सताता है ;
जब कहती हूँ ये ;
तब तुम मौन रहकर
क्यों बस चुपचाप
मुस्कुराते हो ......

कुछ बूँदें
जो मेरी पलकों पर थमी थीं ;
अब सूख गयी  हैं ;
पर उनकी लकीरें
अब भी मेरे चेहरे पर हैं ......

तुम्हारी मौन आँखें
अपलक उसे निहारती हैं ;
आहिस्ता से तुम छु लेते हो
उन लकीरों को;
अपनी  उँगलियों से ,
एक नमी सी  तैर जाती है
मेरे अंदर ........

तभी ख्वाब टूट जाता है
*****************
बेहद सन्नाटा है
मेरे अंदर
और बाहर भी .......

मै फिर से
बातें करना चाहती हूँ
तुम्हारी ख़ामोशी से ;
पर अब वो चुप है
कुछ नहीं कहती
न जाने क्यों ...!!!!!!!!!!!


       रीना !!!!!






































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