यूँ तो मेरी जिन्दगी में
कहीं कोई कमी नहीं थी
मेरे हमनफ्ज़ ........
फिर भी न जाने क्यों
एक खलिश
कांच के टुकड़ों सी
हर सांस .....चुभती थी.....
किनारे से टकराकर लहरें
बार बार जब वापस लौट जातीं
यूँ ही ......मायूस
तब आँखों में एक हल्की गर्म
नमी सी उगती ......
जिस दिन सूरज जल्दी डूब जाता
उस रात के सन्नाटे में
मेरी आँखे चुपचाप
न जाने किसे खोजा करती .......
क्या था वो .....जो रह रहकर
अधूरा सा लगता था........
आज जब तुम मेरे पास हो
मेरे पहलू में ,
शायद समझ पायी हूँ ......
तुम्हारे न होने का अहसास
रीतेपन की अनुभूति
खामोश....सरकता जीवन ,
यही सारे रंग घुलमिलकर
एक जाना पहचाना सा चित्र बनाते हैं,
जिन्हें मै अब
सात परतों के नीचे
दफ़न कर देना चाहती हूँ........
अब तो बस
कुछ मासूम सी ख्वाहिशें
अंगडाइयां लेने लगी हैं ..अंतस में
जाने अनजाने .....
तुम्हारे साथ लहरों में
घंटों अठखेलियाँ करूं,.....
या गीली रेत पर नंगे पाँव
हाथों में हाँथ डाले
दूर तक ....बस यूँ ही ...चुपचाप
तुम्हारे संग चलती चली जाऊं ......
या फिर रात की तन्हाई में
बैठे हों हम दोनों ...आमने सामने ,
दिए की टिमटिमाती रौशनी में
एक दुसरे को धडकता हुआ महसूस करते......
सारी रात ठहरे हुए होने की जद्दोजहद करते
जूझते ..बेचैन सवालों से,
फिर अनायास ही हंस देते........
सूरज की पहली रौशनी से
ये सारे सवाल एक एक कर पिघल जाते
और सामने तैरने लगता ...एक दरिया
मासूम अहसासों का........
जिसमे डूब जाने के लिए
मै तमाम उम्र यूँ ही
तुम्हारे पहलू में सिमटी रहूँ
मेरे हमनफ्ज़ .....
वैसे , यूँ तो कोई कमी नहीं थी
मेरी जिन्दगी में ,
पर अब
सम्पूर्ण होने के मायने
कुछ ख़ास अहसासों के साथ
तुम्हारे साथ हैं .....मेरे लिए
मेरे हमनफ्ज़ ......!!!!!
रीना !!!!!!!
कहीं कोई कमी नहीं थी
मेरे हमनफ्ज़ ........
फिर भी न जाने क्यों
एक खलिश
कांच के टुकड़ों सी
हर सांस .....चुभती थी.....
किनारे से टकराकर लहरें
बार बार जब वापस लौट जातीं
यूँ ही ......मायूस
तब आँखों में एक हल्की गर्म
नमी सी उगती ......
जिस दिन सूरज जल्दी डूब जाता
उस रात के सन्नाटे में
मेरी आँखे चुपचाप
न जाने किसे खोजा करती .......
क्या था वो .....जो रह रहकर
अधूरा सा लगता था........
आज जब तुम मेरे पास हो
मेरे पहलू में ,
शायद समझ पायी हूँ ......
तुम्हारे न होने का अहसास
रीतेपन की अनुभूति
खामोश....सरकता जीवन ,
यही सारे रंग घुलमिलकर
एक जाना पहचाना सा चित्र बनाते हैं,
जिन्हें मै अब
सात परतों के नीचे
दफ़न कर देना चाहती हूँ........
अब तो बस
कुछ मासूम सी ख्वाहिशें
अंगडाइयां लेने लगी हैं ..अंतस में
जाने अनजाने .....
तुम्हारे साथ लहरों में
घंटों अठखेलियाँ करूं,.....
या गीली रेत पर नंगे पाँव
हाथों में हाँथ डाले
दूर तक ....बस यूँ ही ...चुपचाप
तुम्हारे संग चलती चली जाऊं ......
या फिर रात की तन्हाई में
बैठे हों हम दोनों ...आमने सामने ,
दिए की टिमटिमाती रौशनी में
एक दुसरे को धडकता हुआ महसूस करते......
सारी रात ठहरे हुए होने की जद्दोजहद करते
जूझते ..बेचैन सवालों से,
फिर अनायास ही हंस देते........
सूरज की पहली रौशनी से
ये सारे सवाल एक एक कर पिघल जाते
और सामने तैरने लगता ...एक दरिया
मासूम अहसासों का........
जिसमे डूब जाने के लिए
मै तमाम उम्र यूँ ही
तुम्हारे पहलू में सिमटी रहूँ
मेरे हमनफ्ज़ .....
वैसे , यूँ तो कोई कमी नहीं थी
मेरी जिन्दगी में ,
पर अब
सम्पूर्ण होने के मायने
कुछ ख़ास अहसासों के साथ
तुम्हारे साथ हैं .....मेरे लिए
मेरे हमनफ्ज़ ......!!!!!
रीना !!!!!!!
बहुत खूब ...क्या कहूँ शब्द ही कम पड़ रहे हैं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पंक्तियाँ ! गहरे भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने !
ReplyDeletedhanyvad satya ji....
ReplyDeleteshukriya amrendra ji....
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