Monday, 31 October 2011

पूरे दिन की ख़ामोशी
सारी रात की तन्हाई
शून्य सा लगता अस्तित्व .....

जहन में घूमते रहते हैं
कुछ शब्द....अंधड़  से .....

जिनकी कोई पहचान नहीं ;
उन शब्दों का कोई अर्थ नहीं ;
कोई महत्व भी नहीं.......

ये तो बस विचरते हैं ..बेवजह
बिना किसी सिरे के ......

जो उनका कोई छोर पकड़ पाती
कोई नाम दे पाती ;
तब शायद उनका कोई अर्थ होता ;
महत्व होता.......

अभी तो बस एक शून्य है
जिसे ओंकार (ॐ ) में
परिवर्तित करना है ;
इसकी स्वर लहरी के साथ
जीना है ......सारी उम्र .....ख़ामोशी से .....!!!!!



                                     रीना !!!!!



































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