मै स्तब्ध हूँ ;
शून्य हो गयी हूँ,
क्या कोई अहसास
इस कदर भी
एक गुनगुनी सी
ख़ामोशी दे जाता है.....
किसी के कहे
कुछ ही शब्द
उसकी नमी में
डूबी आवाज़
अन्दर से
बेतरह भिगो देती है......
क्या है ये
क्यों है ये ;तब ?
जबकि अब तो इसकी
उम्मीद भी बाकी नहीं थी .......
हाँ ! ये सच है
चाहा था कभी मैंने भी
कुछ मोतियों को
अपने दामन में सजाने के लिए......
पर ये तो मानो
पूरा दरिया ही
मेरे सामने लौट आया है
अहसासों का......
जिसने पूरी उदारता से
खोल दिया है
अपनी तमाम सीपियों को
मेरे लिए ;
और अनगिनत मोती
ओस की तरह
मेरे अहसासों पर छा गए हैं ;
मै भीग गयी हूँ
आत्मा तक......
फिर ये कैसा डर है;
कैसी झिझक है ....
मेरे हाथ आगे क्यों नहीं बढ़ते
क्यों नहीं समेट पाती मै इन सबको ....
शायद फिर खोने से डरती हूँ ..
मै स्तब्ध हूँ ;
अवाक हूँ ,
क्योकि चाहते ; न चाहते हुए भी
ये अहसास मुझमे घुलते जा रहे हैं.......!!!!!
रीना!!!!
शून्य हो गयी हूँ,
क्या कोई अहसास
इस कदर भी
एक गुनगुनी सी
ख़ामोशी दे जाता है.....
किसी के कहे
कुछ ही शब्द
उसकी नमी में
डूबी आवाज़
अन्दर से
बेतरह भिगो देती है......
क्या है ये
क्यों है ये ;तब ?
जबकि अब तो इसकी
उम्मीद भी बाकी नहीं थी .......
हाँ ! ये सच है
चाहा था कभी मैंने भी
कुछ मोतियों को
अपने दामन में सजाने के लिए......
पर ये तो मानो
पूरा दरिया ही
मेरे सामने लौट आया है
अहसासों का......
जिसने पूरी उदारता से
खोल दिया है
अपनी तमाम सीपियों को
मेरे लिए ;
और अनगिनत मोती
ओस की तरह
मेरे अहसासों पर छा गए हैं ;
मै भीग गयी हूँ
आत्मा तक......
फिर ये कैसा डर है;
कैसी झिझक है ....
मेरे हाथ आगे क्यों नहीं बढ़ते
क्यों नहीं समेट पाती मै इन सबको ....
शायद फिर खोने से डरती हूँ ..
मै स्तब्ध हूँ ;
अवाक हूँ ,
क्योकि चाहते ; न चाहते हुए भी
ये अहसास मुझमे घुलते जा रहे हैं.......!!!!!
रीना!!!!
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