Wednesday, 15 February 2012

नदी !

सीने से दर्द की बर्फ
 कुछ यूँ
नजाकत से  पिघली  ;
 रवानी बढ़ती ही गयी 
शाइस्ता अश्कों की
मेरे डूबने तलक ,

न जाने कब इस तरह
 मै औरत से
एक नदी में तब्दील हो गयी
हमनफज मेरे !!


अर्चना राज !!


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