Monday, 27 February 2012

तुम !

तुम
बस वहीँ ठहरे रहो
अपने सुकून की सतह पर
खुशबू की तरह ;

हो सके तो
 एक लिबास सिलो
अपनी साँसों को चुनकर
अपनी धडकनों के धागों से ;

 मै भी वहीँ हूँ
सूरज की सुर्ख ज़मीन पर 
 खलिश का दरिया समेटे ;

मैंने भी बुना है
एक सपना मुहब्बत का
तपिश के धागों से
तुम्हारे लिए ;

 तुम्हारे सुकून और मेरी खलिश को
वक्त के अलाव में
आहिस्ता-आहिस्ता
अभी कुछ और पकने दो ;

फिर हम दोनों ही देंगे
ये सौगात एक दूसरे को
कच्ची मिटटी के घड़े में भरकर ;

तुम्हारे लिबास में मै राधा बन जाउंगी
और मेरे सपने संग तुम मोहसिन बन जाना
हमनफज मेरे !!




अर्चना राज !!







 








 

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